भगवा का अभ्युदय
निराश न हो मेरे वीर सनातनी,भगवा ध्वज वैभव से लहराएगा।
आशा है भगवामय होगा विश्व,
जल्द एक दिन ऐसा भी आएगा।
जब तक गूंजेगी वेदों की ऋचाएं,
जब तक ये शंखनाद सुनाई देगा,
हर हृदय में राम एवं कृष्ण बसेंगे,
हर दिशा में रामायण गायन होगा।
गौरवशाली यह संस्कृति अपनी,
अमर रहेगी, अविनाशी है,
गंगाजल सा पावन प्रवाह,
हर कण में इसकी भाषा है।
नंदी की गूँज पुनः उठेगी,
गर्भगृह से प्रकाश निकलेगा,
जो अधर्म की राह चला था,
वह भी धर्म पथ पर झुकेगा।
महाकाल का डमरू बजेगा,
फिर से गीता का ज्ञान गूंजेगा,
कृष्ण की बंसी प्रेम सिखाए,
राम का आदर्श फिर जगेगा।
सूर्य सा तेज लिए बढ़ेंगे,
हम फिर से विश्वगुरु बनेंगे,
सनातन की जयकार गूँजे,
हम अखंड भारत रचेंगे।
निराश न हो सनातनी,
तेरा यशगान रहेगा अमर,
तेरा भगवा अमिट रहेगा,
नभ में लहराता परचम।
आओ मिलकर हम दीप जलाएँ,
एक नवयुग का हम निर्माण करें,
एक अनुपम संस्कृति एवं चेतना,
अखंड भारत पुनः प्रख्यात करें।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से"
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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