सकारात्मक सोच के साथ देखो
जीवन है आस, जीवन में विश्वास पाया,जीवन का हरपल, बहुत ख़ास हमने पाया।
जब जब भी चाहा, जीवन से कुछ हमने,
जीवन ने ख़ुशियों से, हमको सजाया।
बचपन में ममता दुलार, बहुत मिला,
फिर खेलों में हमने, जीवन बिताया।
आँगन से खेतों तक, धमाचौकड़ी की,
भाई बहनों संग, यूँ बचपन बिताया।
पढ़ लिख कर जब युवा हो गये हम,
जीवन में ख़ुशियाँ, नया साथी पाया।
फिर नन्ही किलकारी, आँगन में गूंजी,
जीवन ने जैसे, फिर बचपन को पाया।
बचपन के संग हम फिर बच्चा बनकर,
ख़ुशियों को अपने आँगन सजा रहे हैं।
जीवन समर में कुछ खट्टे मीठे अनुभव,
जीवन सफ़र को यादगार बना रहे हैं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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