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हमने कहाँ किसी उपवन से

हमने कहाँ किसी उपवन से

डॉ रामकृष्ण मिश्र
हमने कहाँ किसी उपवन से
गंधिल मधुर पवन माँगा था
फिर भी उसने मादक सौरभ
मेरे लिए अभी भेजा है।।


जंगल- जंगल बजी डुगडुगी
भौंरों को मिल गया निमंत्रण
आधी रात बज उठी वंशी
जाने क्यों खो रहा नियंत्रण।
मन के तार झनक लें मन भर
मेरे लिए समय भेजा है।। 38


किसने स्पर्श किया फूलों को
भरी गुदगुदी पोर - पोर में
बाल अरुण के शंख फूँकते
क्षितिज चमकने लगे भोर में।।
क्यों ऐसा लगता कि रन्ध्र से
भावाधिक्य विषय भेजा है।।


नील गगन के शुभ आनन पर
अनचीन्हे उभरे आखर हैं
पढ़ने की आतुर मुद्रा में
आँखों में उभरे सागर हैं।।
जीवन की कज्जल धारा मे
किसने सहज मलय भेजा है।।रामकृष्ण
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