जो बीत गई सो बात गई
जो बीत गई सो बात गई,काली अंधियारी रात गई।
सुख का सूरज निकलेगा,
आशाओं की प्रभात नई।
बुजुर्ग बात कहते थे सही,
बदला जमाना न बात रही।
कैसी आंधी ये बयार बही,
ढहती मर्यादा संस्कार कहीं।
उड़ानें आसमां में उड़ो सही,
मंजिले अब ज्यादा दूर नहीं।
सफलताएं कदमों में होगी,
बुलंदियां भरी झोली में रही।
कुछ सपने नए सजाओ सखे,
जीवन पथ की है राहें नई नई।
कुछ लक्ष्य साध लो जीवन में,
उत्साह उमंगे भर लो नई-नई।
जो चला गया वह जाएगा ही,
रोशन हो जाए हम वही कहीं।
कदम जमाए रखना है हमको,
अब जो बीत गई सो बात गई।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है
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