यारों के संग बैठा था मैं,
अजीब घड़ी एक आई।एक ठिठोली किया सभी ने,
क्या है तेरी कमाई।।
सारा जीवन प्रेम लुटाया,
पैसा नहीं कमाया।
प्रश्न पुछकर यारों ने,
मेरे मन को दुखलाया।।
इंसानियत और प्रेम बढ़ाना,
धंधा अब नहीं बहुत सरल है।
अमृत रहा नहीं इस धंधे में,
अब लिपटा हुआ गरल है।।
आज कमाये पैसा जिस विधि,
वह इंसान ही सबको सुहाता है।
प्रेम से मानवता को जोड़ने वाला,
आज कम लोगों को भाता है।।
जय प्रकाश कुवंर
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