तुम प्रणय की देवी,मैं समर्पित फूल
प्राण प्रिय मान प्रतिष्ठा,उपमा जीवन ज्योति ।
नयनन पट नेह निर्झर,
अंग प्रत्यंग लावण्य न्योति ।
रूप श्रृंगार अति कमनीय,
अंतर चाह आलिंगन झूल ।
तुम प्रणय की देवी,मैं समर्पित फूल ।।
दिनचर्या मस्त मलंगी,
मृगनयनी चाल ढाल ।
मोहक कोमल कपोल,
मादकता अनंत उछाल ।
रग रग सौंदर्य अनुपमा,
भाव भंगिमा नेह पूल ।
तुम प्रणय की देवी,मैं समर्पित फूल ।।
स्नेहिल सौम्य मुखमंडल,
मनोरम लैंगिक स्पंदन ।
काम रति दर्शन अनुपम,
संवाद पटल प्रीत वंदन।
हाव भाव आमंत्रण संकेत,
मुस्कान प्रेम स्वीकृति कूल ।
तुम प्रणय की देवी,मैं समर्पित फूल ।।
सुखद मंगल स्वप्निल प्रभा,
मधुर मृदुल उर अठखेलियां ।
प्रीत भाषा शब्द अर्थ परे,
संसर्गमय अनूप पहेलियां ।
अथाह प्रवाह शौर्य साहस,
हिय हिलोरित तृप्ति मूल ।
तुम प्रणय की देवी,मैं समर्पित फूल ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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