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भावी (भविष्य में होने वाला )

भावी (भविष्य में होने वाला )

गीता का सार है फल की चिंता किये बिना कर्म करने का अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण का महाभारत की युद्ध भूमि पर दिया गया उपदेश। मनुष्य के हाथ में केवल कर्म करना ही है। और यही उपदेश भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से सारे संसार को दिया है।
कर्मफल उसके हाथ में नहीं है, वह सर्व नियंता परमेस्वर के हाथ में है। पृथ्वी पर छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब सब कोई अपने अपने काम में लगा हुआ है। एक मनुष्य जो कर्म को धर्म समझ कर करता है, एवं एक जो कर्म तो करता है, परंतु अनमनस्क भाव से करता है, ईश्वर उन दोनों के कर्मों का लेखा जोखा करते रहते हैं। तथा अंत में कर्मफल उसी के अनुसार देते हैं।
एक किसान फसल लगाता है और जिस समय उस फसल को लगाना है, उसी समय लगाता है । एक दूसरा किसान भी उसी फसल को तो लगाता है अपने खेत में, परंतु वह सही समय पर नहीं लगाता है। सिंचाई तथा खाद खली दोनों ही अपने अपने फसल लगी खेत में व्यवहार करते हैं। परंतु पहला किसान हर चीज समय में करता है, जबकि दूसरा किसान जब खुशी तब अपने मर्जी अनुसार करता है। जब फसल तैयार होता है, तो दोनों के फसलों में काफी फर्क पड़ता है। समय में करने वाले किसान का पैदावार दूसरे मन मर्जी से करने वाले किसान की तुलना में ज्यादा होता है। यहाँ भगवान ने फल उनके कर्मों के अनुसार लेखा जोखा करके दिया।
एक ही वर्ग में पढ़ने वाले अनेक छात्रों में कोई प्रथम श्रेणी में पास करता है, कोई द्वितीय, तथा तृतीय श्रेणी में पास करता है, तो कोई फेल भी करता है। यहाँ पढ़ाई कहने के लिए तो सबने किया है, परंतु उसका फल भगवान ने उनके कर्म करने एवं लगन के अनुसार दिया।
कभी कभी ऐसा भी देखा जाता है कि कोई आदमी अपना काम बहुत ही लगन और ईमानदारी से करता जाता है। परंतु उसका फल पाने का जब समय आता है, तब कोई ऐसी आपदा आती है कि सब कुछ नष्ट हो जाता है। यहाँ ईश्वर वह अनिष्ट किस किस उद्देश्य से करता है, वह केवल ईश्वर ही जानता है। उस अनिष्ट में क्या राज छुपा है, वह एक मात्र ईश्वर ही जानता है। पृथ्वी पर ऐसे अनेक उदाहरण देखने को आये दिन मिल जाता है। ऐसा भी होता है कि उस अनिष्ट में कोई लाभ हो।
एक आदमी हवाई अड्डा के लिए अपनी निर्धारित जहाज पकड़ने के लिए धर से समय में निकलता है। रास्ते में वह कुछ ऐसे सड़क जाम में फंसता है कि वह हवाई अड्डा काफी देर से पहुंच पाता है और उसकी फ्लाइट निकल जाती है। वह काफी परेशान होता है , क्योंकि फ्लाइट न पकड़ पाने की वजह से उसका बहुत ही ज्यादा व्यवसायिक नुकसान हुआ है। वह अपने घर वापस लौट आता है और दुखी मन से घर में बैठ कर टीवी खोलकर देखने लगता है। टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज़ दे रहा होता है कि, जिस फ्लाइट में उसका आरक्षण था और वह हवाई अड्डा लेट पहुँचने के वजह से उसे नहीं पकड़ पाया था, वह क्रैश हो गया है और फ्लाइट के सारे लोग मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं। इस न्यूज़ को देख कर वह आचंभित हो जाता है और ईश्वर को याद कर फूट फूट कर रोने लगता है कि हे प्रभु आपने मेरे जीवन को किस प्रकार से बचा दिया है।
ऐसी सांसारिक अनेक घटनाओं को देखकर यही लगता है कि हम सब केवल अपने कर्म करने में लगे हुए हैं, जबकि कर्मफल से अनजान हैं।
भगवान ने मनुष्य रूप में पृथ्वी पर अवतरित होकर खुद अपने साथ घटी घटनाओं के माध्यम से भी संसार को इस बात को समझाने का प्रयत्न किया है कि, तुम केवल अपना कर्म करो, फल तुम्हारे हाथ में नहीं है, उसे देने वाले हम अर्थात ईश्वर हैं। भगवान जब राम रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे, तो एक समय, उनके पिता दशरथ जी उनकी राजगद्दी की तैयारी कर रहे थे। लेकिन ईश्वर के चाहने अनुसार घटना क्रम कुछ ऐसा हुआ कि राम को अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्षमण के साथ वन को जाना पड़ा। इस बीच राजा दशरथ की मृत्यु भी हो गई। भरत जी , जिनको वरदान के अनुसार राजगद्दी पर बैठना था, जब वो ननिहाल से अयोध्या लौटते हैं, तो सब कुछ देखकर बहुत दुखी होते हैं। अपनी माता कैकेयी के सारे षड्यंत्र को जानकर भरत जी और भी ज्यादा दुःखी होते हैं। ऐसी अवस्था में उनके कुलगुरु बशिष्ट जी उनको ढाढस बंधाते हैं और भरत जी से कहते हैं , जैसा कि श्रीरामचरितमानस में लिखा गया है :-
सुनहु भरत भावी प्रबल,
बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभ जीवनु मरन,
जसु अपजसु बिधि हाथ।।
ऐसा विचार कर कोई भी ज्ञानी मनुष्य किसी भी होनी अथवा घटना के लिए स्वयं को अथवा किसी और को दोषी नहीं मानता है। उसने अपने जानते हुए भला के लिए कर्म किया है। लेकिन कर्मफल तथा भविष्य का निर्धारण ईश्वर के हाथ में है।

जय प्रकाश कुवंर
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