निकट की सुंदरता को पहचाने
मनुष्य की स्वभाविक प्रवृत्ति है कि वह दूर की चीजों में अधिक रुचि लेता है, भविष्य की योजनाओं में उलझा रहता है, और अपनी इच्छाओं को बड़े सपनों के साथ जोड़ता है। लेकिन इसी प्रवृत्ति के चलते वह कभी-कभी उन अनमोल क्षणों और अवसरों को नजरअंदाज कर देता है, जो उसके एकदम निकट होते हैं।
हम अक्सर खुशियों की तलाश में दूर-दूर तक भटकते हैं, जबकि सच्ची खुशी हमारे आसपास ही बिखरी होती है—परिवार, मित्रों, प्रकृति, और हमारे अपने छोटे-छोटे प्रयासों में। सफलता की राह भी कभी-कभी उतनी जटिल नहीं होती जितना हम सोचते हैं। हम दूर के लक्ष्य को पाने में इतने मग्न हो जाते हैं कि अपने वर्तमान संसाधनों और क्षमताओं को भूल जाते हैं।
एक कलाकार अगर केवल महान कृतियों की कल्पना में खोया रहे और अपने आसपास के रंगों को न देखे, तो उसकी कला अधूरी रह जाएगी। इसी तरह, जीवन में भी हमें अपने आसपास की रचनात्मकता, अवसरों और छोटी-छोटी खुशियों को अपनाना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि कभी-कभी जो हम चाहते हैं, वह हमारी सोच से भी ज्यादा निकट होता है—बस हमें उसे पहचानने की जरूरत होती है।
इसलिए, अपनी दृष्टि को इतना विस्तृत मत करें कि पास की सुंदरता ओझल हो जाए। जीवन में संतोष, कृतज्ञता और सजगता अपनाएं, और जो पास है, उसे सहेजकर आगे बढ़ें।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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