मृत्यु: एक उत्सव
मृत्यु का मुझे भय-शोक नहीं है,मेरे लिए तो यह परम उन्मुक्ति है।
न कोई बंधन, न कोई पीड़ा,
बस आत्मा की शाश्वत मुक्ति है।
क्यों रोता है जग इस पल के लिए?
जो निश्चित है, जो अवश्यम्भावी है।
यह अंत नहीं, एक नई शुरुआत है,
एक नयी यात्रा, जहाँ शांति अनंत है।
जीवन एक सरिता, जो सतत बहता,
मृत्यु है सागर, जो इसे है अपनाता।
न कोई डर, न कोई अवरोध यहाँ,
बस चिर विश्राम-मोक्ष का द्वार यहाँ।
जो आया है, उसे जाना ही होगा,
यह तो नियम है, इसे निभाना ही होगा।
मगर यह विदाई विषाद की नहीं,
यह तो मिलन है शाश्वत शांति से।
न कोई पश्चाताप, न कोई उलझन,
बस कर्मयोग सिद्धांत पर चलती है।
यह न कोई हार है, न कोई पीड़ा,
बस आत्मा की परम गति है।
अतः मत रोओ, मत विलाप करो,
मृत्यु तो जीवन का एक उत्सव है।
भय से नहीं इसे उन्मुक्त भाव से भरो,
क्योंकि यही सत्य, यही परम तत्व है।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से"
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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