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रंग बसंती हुई धरा

रंग बसंती हुई धरा

रंग ही रंग बसंत संग व्योम उड़ रही गुलाल है।
बसंत बहार आई होली रसिया गाए धमाल है।
फागुन महीना मदमाता मस्ती छाई गुलजार है।
फागुन खेले मोहन प्यारे राधा रानी कचनार है।

पीली पीली सरसों महकी हर फूलों की क्यारी।
हर दिल में अनुराग उमड़े गुलाल उड़ रहे भारी।
बांसुरी की धुन पर नाच रहे चंग बजाते मस्ताने।
आओ भाई होली खेले निकल पड़े सब दीवाने।

मधुमास मुस्कान बिखेरे हंसी खुशी का मौसम।
फाग प्रीत रस बिखराए छाया मस्ती का आलम।
चौक चौराहे चमके सारे गीतों की आई है बहार।
गजबण गोरी लजवंती गाएं मधुर बरसे रसधार।

रंग जमा दरबार बीच सब सुनो सुरीला तराना।
बसंती रंग में रसिक गाता झूम झूम मधुर गाना।
रंग बसंती हुई धरा सब चेहरों पर रौनक छाई।
सद्भावों की प्रेमधारा लेकर रंगों की होली आई।


रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान 
रचना स्वरचित व मौलिक है
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