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विवशता

विवशता

सुरेन्द्र कुमार रंजन
उसकी कुटिल मुस्कान से मैं घायल हुआ,
मदहोश अंगड़ाइयों का मैं कायल हुआ।
मनमोहक अदाओं ने ऐसा जादू किया,
मन विचलित बहुत दिल बेकाबू हुआ ।


सौंदर्य का प्रदर्शन जो उसने किया,
निगाहों ने उसका जब दर्शन किया।
मन आंदोलित हुआ तन ने सौदा किया ,
दिल ने हामी भरी पर मन ने ठुकरा दिया।


तोड़ मर्यादा की हद पास वह आ गई,
मैं हतप्रभ रह गया वह लिपट सी गई।
अब तक जो बची थी इज्जत मेरी,
पल भर में ही वह नीलाम हो गई।


एकाकी जीवन का उसने फिर वास्ता दिया,
अपने जीवन में आने का नया रास्ता दिया।
अस्मिता की रक्षा का वास्ता दे मुझे मनाया,
धन - दौलत का लोभ देकर मुझे फंसाया ।


घर - द्वार, समाज की नजरों में मुझे गिराया,
जीवन भर के सद्गुण को पल में मिटाया।
अपनों की नजरों में गिर कर चकनाचूर हुआ,
नर्क से बद्तर जिंदगी जीने को मजबूर हुआ।

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