Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

तुम्हें देख चांद भी शर्माता

तुम्हें देख चांद भी शर्माता

नेह सिंधु अथाह मधुरिम,
पुलक हुलस भाव सरस ।
उमड़ घुमड़ लहर लहर,
रिमझिम रिमझिम बरस ।
स्नेहिल मोहक परिध क्षेत्र,
संबंध अपनत्व निर्झर पाता ।
तुम्हें देख चांद भी शर्माता ।।


प्रति पल व्याकुलता,
तरस तरस दृग वृष्टि।
तृषित तप्त उर पीर,
तपन हर हिय पुष्टि ।
धर मुस्कान आभा मंडल,
जीवन प्रणय सौरभ फैलाता ।
तुम्हें देख चांद भी शर्माता ।।


नीरस शुष्क दग्ध तन मन ,
दर्शन कर आनंद तृप्ति ।
शीतल सजल छाया कंग
अंतरतम आलोक युक्ति ।
प्रेरणा सेतु उत्सविक ज्योत,
उत्साह उमंगी भाव जगाता ।
तुम्हें देख चांद भी शर्माता ।।


पुनीत दर्श परम सौभाग्य,
घट मंदिर सदैव पावन।
संवाद पट मृदु सरस सुधा ,
मानस खुशियां बिछावन
जीवन पथ ललित ललाम,
तृष हृदय मिलन स्वप्न सजाता ।
तुम्हें देख चांद भी शर्माता ।।


कुमार महेन्द्र

(स्वरचित मौलिक रचना)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ