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बसंत

बसंत

रमाकांत सोनी

देखो ऋतुराज बसंत चले आए।
फूल खिले हैं उपवन महकाए।
बहने लगी है सुरभित पुरवाई।
उर आनंद उमंग घट घट आई।


पीली पीली सरसों है लहराई।
अधरों पर मधुर मुस्काने छाई।
हंसी वादियां भी लगी चहकने।
फल फूलों से लगे वन महकने।


मदमस्त बहारों ने ली अंगड़ाई।
गीत गूंजने लगे बजी शहनाई।
कुदरत ने नाना श्रृंगार किया है।
धरती ने हरियाली धार लिया है।


मौसम हो गया बड़ा ही सुहावना।
तान छेड़ता साज है नया तराना।
बसंती बयार है बहती मनमोहक।
धड़कनों की राग हुई है धक-धक।
मनमयूरा झूमता डमरू बजता है।
आया वसंत रूप वसंती सजता है।


रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
 रचना स्वरचित मौलिक है
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