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ऐसा क्या हो गया कि धरती

ऐसा क्या हो गया कि धरती 

डॉ रामकृष्ण मिश्र
ऐसा क्या हो गया कि धरती 
   बदल रही परिधान।। 
अभी अभी तो गौनेवाली
चूनर में खिलती थी
पकी फसल की पियराई में
दमक चमक दिखती थी। 
चना ,मसूर, गेहूँ अरहर की
     हरियाई        मुस्कान।। 
अमराई के कोंपल में 
ललछाँई आभा पसरी। 
और शाख पर बैठ गयी
कोयल ले छोटी बँसुरी।। 
जाने किस विहाग राग में
करती अनुसंधान।। 
महुए के फूलों ने भर दी
मादकता  का    भंग । 
हवा भी लगी  इतराने
हर ओर बिछे  नवरंग।। 
मन की साँसों में उतराया
जीवन  का   संज्ञान।। 
**"**"
रामकृष्ण
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