भूमि सर्वेक्षण क्यों है जरूरी जमीन खरीदते समय क्या-क्या रखें सावधानियां ?

अधिवक्ता शिवानन्द गिरी की कलम से |
आजकल बिहार के प्रत्येक चौक चौराहा, नुक्कड़ों या गांव में भूमि सर्वेक्षण की चर्चाएं चल रही हैं| भूमि सर्वेक्षण 20 अगस्त 2024 में बिहार सरकार ने शुरू किया है जो 31 मार्च 2025 तक चलेगा | एक तरफ बिहार में 22 मार्च 1912 को बिहार और उड़ीसा बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग हुआ था और 1925 में लैंड सर्वे का काम पूरा किया गया था जबकि दूसरी तरफ भारत में केडस्ट्रियल सर्वे 1785 में शुरू हुआ था|
क्या होता है केडेस्ट्रियल सर्वे ?
केडस्ट्रियल सर्वे जमीन की सीमाओं को तय करने और उनका रिकॉर्ड रखने का काम होता है ,यह जमीन से जुड़े कानूनी मामलों में अहम भूमिका निभाता है | केडस्ट्रियल सर्वे में जमीन की सीमाओं का भौतिक चित्रण किया जाता है साथ ही जमीन के क्षेत्रफल आयाम और कुछ अधिकारों का भी निर्धारण किया जाता है |
आज के लोग भूमि सर्वेक्षण के बारे में जानने को बहुत उत्सुक रहते हैं, बिहार सरकार यह मानती है कि अधिकांश दीवानी एवं फौजदारी मुकदमो की जड़ भूमि विवाद है क्योंकि भूमि विवाद के वजह से बहुत सारे लड़ाई झगड़ा एवं हत्याएं हो रही हैं| बिहार में जिस गति से जमीन की कीमतें बढ़ी है उसके वजह से भूमि विवाद बढ़ता ही जा रहा है | भूमि सर्वेक्षण कराने का मुख्य उद्देश्य बिहार के जमीनों का एक डिजिटल नक्शा तैयार करके खतियानों को अपडेट एवं डिजिटल करना है एवं जो व्यक्ति अवैध तरीके से किसी के जमीन पर कब्जा करके रखे हुए हैं उस कब्जे को छुड़ाना भी है | हालांकि बाजार में यह भी अफवाह फैल रही है कि बिहार सरकार भूमि सर्वेक्षण करा कर वैसे किसानों का जमीन हड़प लेना चाहती है जिसके पास जमीन का कागज नहीं है परंतु सच्चाई यह नहीं है, बल्कि सच्चाई यह है कि जो पुराने खतियान आज तक चले आ रहे हैं जिसमें वर्तमान रैयतधारी के दादा परदादा का नाम अभी तक उनके जमीन के खतियान में चला आ रहा है उसको अपडेट करके उनके वंशजों का नाम रजिस्टर वन पर चढ़ाया जा सके| हमारे देश को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली थी उस वक्त जो रजिस्टर वन में जिनका नाम चढ़ा था उसी के अनुसार आज तक पूर्व के रैयत धारी का नाम चला आ रहा है और जो व्यक्ति रैयतधारी के वंशज थे जिन्होंने अपने निजी कार्य के लिए जमीन किसी और के हाथ बेचा तो उस खरीददार का नाम रजिस्टर टू में चढ़ा दिया गया परंतु रजिस्टर वन में कोई सुधार नहीं किया गया और उस जमीन के पूर्व के रैयतधारी का ही नाम रजिस्टर वन पर चढ़ा चला आ रहा है|
क्या होता है रजिस्टर वन और रजिस्टर टू इसे जानते हैं:-
जमीन के मूल दस्तावेज को रजिस्टर वन कहते हैं जिसमें जमीन के पूर्व के मालिकों का नाम खाता, खेसरा, रखवा मौजा एवं रैयतधारी का नाम का विवरण रहता है परंतु रजिस्टर टु भी सरकारी दस्तावेज है पर वह मूल दस्तावेज का एक कॉपी होता है जिसमें नए खरीदार का दाम पुराने मालिक के नाम को हटाकर उसके जगह पर चढ़ा दिया जाता है इसे दाखिल खारिज करते हैं| गौरतलब है कि नए खरीदार का नाम तो रजिस्टर टु पर चढ़ा दिया जाता है परंतु जमीन के रजिस्टर वन पर जमीन के पूर्व मालिक का ही नाम रहता है उसमें कोई बदलाव नहीं किया जाता है पर अब भूमि सर्वेक्षण हो जाने के बाद जमीन के खतियान के अलावे रजिस्टर वन में भी सुधार हो जाएगा और पूरी तरह से अपडेट होकर यह दस्तावेज डिजिटल हो जाएगा जिसे कोई भी व्यक्ति बिहार भूमि रिकॉर्ड के वेबसाइट पर सर्च करके देख सकेगा|
कुछ लोगों के मन मे यह भी डर रहता है कि वह भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया में किस प्रकार से शामिल हो सकेंगे अगर वह बिहार से बाहर रह रहे हो तो ऐसे स्थिति में आपको बता दें कि वे http://dlrs.bihar.gov.in के वेबसाइट पर जाकर अपना ऑनलाइन फॉर्म भर के अपना भूमि का सर्वेक्षण करा सकते हैं | सरकार ने प्रत्येक मौजा में रैयतधारी की मदद के लिए कानूनगो एवं अमीन की बहाली भी किया है जो आपके मौजा में कैंप करेंगे और जमीन सर्वेक्षण कराने के काम में मदद करेंगे एवं आपको इस संबंध में समुचित जानकारी देंगे| अमीन आपकी जमीन का पैमाईश करके आपसे लैंड सर्वे का प्रपत्र 2 एवं प्रपत्र 3(1) को भरवा कर उसे ब्लॉक में जमा करेंगे और आपका जमीन का नक्शा ऑनलाइन एवं डिजिटल हो जाएगा|
बिहार में जमीन सर्वेक्षण के लिए कौन से दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है?
बिहार में जमीन सर्वेक्षण के लिए आपको खतियान, मालगुजारी रसीद, आधार कार्ड, वंशावली, मोबाइल नंबर जमीन से संबंधित कागजात, वसीयतनामा के कागजात जमीन से जुड़ा कोई भी कोर्ट ऑर्डर, आवेदक या हित प्राप्त करने वाले व्यक्ति के वारिस का प्रमाण पत्र ,लैंड पोजीशन सर्टिफिकेट, पासपोर्ट साइज फोटो ,अगर जमीन पूर्वजों के नाम पर थी और अब वे जीवित नहीं है तो उनके मृत्यु प्रमाण पत्र का दस्तावेज, स्व घोषणा पत्र इत्यादि|
जमीन सर्वेक्षण कराते समय किन-किन बातों का रखें ख्याल?
जमीन सर्वेक्षण कराते समय कुछ प्रमुख बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए जैसे जमीन से जुड़ी सभी जानकारी, रैयत का नाम ,उनका अंश ,पिता का नाम, खाता नंबर, खेसरा नंबर ,रखवा नंबर ,थाना नंबर, जमीन का प्रकार और जमीन प्राप्त होने का माध्यम इत्यादि के बारे में ठीक-ठाक प्रपत्र 2 और प्रपत्र 3 (1) को भरना चाहिए|
बिहार राज्य के कुल 38 जिलों में से 20 जिलों (5,657 गांव को कवर करते हुए) में भूमि सर्वेक्षण लगभग अपने अंतिम चरण में है शेष 18 जिलों (जिसमें 37,384 गांव शामिल होंगे) में सर्वेक्षण की प्रक्रिया चल रही है|
15 अगस्त 1947 में देश के आजाद होने के बाद सन् 1950 में जमींदारी उन्मूलन कानून 1950 लागू करके भारत सरकार जमींदारी प्रथा को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया था हालांकि कुछ राज्य जैसे उत्तर प्रदेश एवं बिहार इत्यादि के द्वारा अपने राज्य में 1949 में ही जमींदारी उन्मूलन बिल लागू कर दिया गया था| अंग्रेज के जमाने के जो जमींदार होते थे आजादी के बाद उनके काम को अंचल अधिकारी करने लगे अर्थात पूर्व में जो जमींदार होते थे आजादी के बाद जमींदार के पद को बदलकर अंचलाधिकारी का पद सृजित किया गया| बिहार के जमींदार वीर कुंवर सिंह काफी प्रसिद्ध व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों से लड़ते हुए उनके गोली से जख्मी अपने हाथ को काट कर गंगा जी को अर्पण कर दिये थे|
कितने प्रकार की भूमि होती है और कौन सी भूमि खरीद बिक्री के योग्य होती है:-
बहुत सारे लोगों ने वैसे जमीन भी गलत तरीके से खरीद लिए हैं या किसी को बेच दिए हैं जिसकी खरीद बिक्री नहीं की जा सकती है ,इसमें नीचे से लेकर ऊपर तक के अधिकारी भी कहीं ना कहीं शामिल रहे हैं तो आईए जानते हैं भूमि कितने प्रकार की होती हैं और कौन सी जमीन की खरीद बिक्री हो सकती है एवं जमीन खरीदते वक्त आपको कौन-कौन सी प्रमुख सावधानियां बरतनी चाहिए:-
पहले भूमि जो आप सभी ने नाम सुना होगा जिसका नाम गैर मजरुवा जमीन है ,गैर मजरूवा जमीन भी दो प्रकार के होते हैं गैर मजरुवा आम जमीन एवं गैर मजरूवा खास जमीन:-
गैर मजरूवा आम जमीन वैसा जमीन होता है जिसे सरकार किसी विशेष कार्य के लिए छोड़े रखती है जैसे नदी, पहाड़, बंजर, पथरीला जमीन इत्यादि उस जमीन पर सरकार हाट- बाजार लगाने के लिए या सड़क निर्माण के लिए या सामुदायिक भवन निर्माण के लिए या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या सरकारी विद्यालय या किसी अन्य सरकारी कार्य के लिए रखती है ,उस प्रकार के जमीन की खरीद बिक्री नहीं की जाती है | कोई व्यक्ति जमीन खरीदते वक्त पहले जांच कर लिया करें कि क्या वह गैर मजरुवा जमीन तो नहीं है| गैर मजरूवा खास जमीन वैसी जमीन होते हैं जो आजादी के पहले जो एससी एसटी कास्ट के या गरीब व्यक्ति जो जमींदार के यहां सेवक हुआ करते थे जिसे जमींदार ने 1.1.1946 से पहले हुकुमनामा बनाकर उन लोगों को बसने एवं खेती करने के लिए दिया था और आजादी के बाद भी वह जमीन उनके कब्जे में रह गया तो वैसे जमीन को हुकुमनामा से प्राप्त व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य को बेचा नहीं जा सकता है उन्हें केवल उस जमीन पर रहने या खेती-बाड़ी करने का अधिकार दिया गया है, अगर कोई व्यक्ति वैसा जमीन खरीद बिक्री करता है तो वह गलत है, सरकार जब चाहेगी उनको उस जमीन से बेदखल कर देगी उस जमीन का रजिस्ट्री नहीं होता है और ना ही उसका माल गुजारी रसीद कटता है |एक खासमहल का जमीन होता है, यह खास महल का जमीन किस प्रकार का जमीन होता है क्या ऐसे जमीन की खरीद बिक्री की जाती है आईए जानते हैं, इसके बारे में यह आप जान लीजिए की खास महल का जमीन की खरीद बिक्री नहीं की जा सकती है, कोई व्यक्ति अगर जमीन खरीद बिक्री करता है तो इस बात की जांच अवश्य करले की कहीं वह जमीन खास महल का तो नहीं है क्योंकि खास महल का जमीन पूरी तरह से एक सरकारी जमीन होता है| आजादी के पहले अंग्रेज अफसर अपने निजी कार्य के लिए कुछ जमीन रखते थे जैसे रंग महल बनाना अपने अपने रिश्तेदार परिवारों के लिए घर मकान बनाने, अपने घोड़े के लिए अस्तबल बनाने एवं अन्य किसी कार्य इत्यादि हेतु परंतु जब भारत आजाद हो गया तो अंग्रेज जमीन छोड़कर अपने देश चले गए और उस जमीन मकान या संपत्ति को ही खासमहल का जमीन कहते हैं और उस जमीन पर पूरी तरह से मालिकाना हक सरकार की होती है| एक और जमीन होता है जिसको बकास्त भूमि कहते हैं| बकास्त भूमि की खरीद बिक्री की जा सकती है क्योंकि वकास्त भूमि वह भूमि होता है जो आजादी के पहले जमींदारों की अपनी निजी संपत्ति होती थी और उसके बाद जमींदार के वंशज, उत्तराधिकारी का उस जमीन पर मालिकाना हक प्राप्त हो गया तो स्वभावतः मालिकाना हक प्राप्त व्यक्ति जिन्हें अपने पूर्वजों से जमीन प्राप्त हुआ है ऐसे बकास्त भूमि की खरीद बिक्री वे कर सकते हैं| एक मुख्य जमीन रैयती जमीन होता है जिसकी खरीद बिक्री की जा सकती है यह एक अच्छे प्रकार की जमीन होती है| रैयती जमीन उसे कहते हैं जो किसानों की भूमि है उस भूमि के वंशज अपने हिस्से का जमीन किसी को भी रजिस्ट्री कर सकते हैं तो अगर आप जमीन खरीदना चाहते हैं तो रैयती जमीन ही खरीदें इसमें कोई दिक्कत नहीं होती है एक और जमीन टोपोलैंड का भी होता है टोपोलैंड जमीन की खरीद बिक्री नहीं की जा सकती है| टोपोलैंड का जमीन नदी का जमीन होता है, समय-समय पर नदी का पानी जब सुख जाता है तो नदी के किनारे या बीच में जमीन निकल आती है तो वैसे जमीन की खरीद बिक्री नहीं की जा सकती है और उसकी रजिस्ट्री भी नहीं होती है | एक लीज का भी जमीन होता है लीज पर का जमीन को किसी को खरीदने बेचने का अधिकार नहीं है क्योंकि सरकार किसी व्यक्ति, किसी कंपनी ,किसी संस्था, किसी फर्म को किसी कार्य को करने के लिए उन्हें लीज पर जमीन देती है और वह केवल उस जमीन का उपभोग कर्ता होते हैं और जमीन के उपयोग करने के एवज में वे सरकार को किराया देते हैं| लीज का एक समय सीमा होता है और समय सीमा समाप्त होने पर लीजधारी व्यक्ति को अपना कब्जा उस जमीन पर से छोड़ देना होता है, कहीं-कहीं स्थाई लीज पर भी जमीन दिया जाता है ऐसी स्थिति में लीज धारी आजीवन उस जमीन पर कब्जा बनाए रखते हैं परंतु वह जमीन के मालिक नहीं हो सकते, उन्हें जमीन खरीद बिक्री का अधिकार नहीं होता है वह केवल उस जमीन का उपयोग कर सकते हैं परंतु जमीन को बेच नहीं सकते हैं| एक केवाला वाला जमीन भी होता है जिसे रजिस्ट्री जमीन कहते हैं ऐसा जमीन जो सही तरीके से रजिस्ट्री कराया गया है और जिसका दाखिल खारिज हुआ है उस जमीन की खरीद बिक्री की जा सकती है वैसे जमीन को खरीदने में कोई रिस्क नहीं है परंतु जमीन खरीदने के पहले एक प्रमुख बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति किसी से जमीन खरीदने जा रहा है तो सबसे पहले उन्हें जमीन का खतियान या ,केवाला वाला जमीन हो तो रजिस्ट्री डीड, वंशावली या लैंड पोजीशन सर्टिफिकेट, आधार कार्ड ,करंट मालगुजारी रसीद इत्यादि की फोटो कॉपी मांगनी चाहिए और उसे अंचल कार्यालय से वेरीफाई करवा लेना चाहिए इसके अलावे जमीन खरीद बिक्री का एक हजार रुपए के नन जुडिशियल स्टांप पेपर पर वय बयानापत्र भी अवश्य बनवा लेना चाहिए उसके बाद एक टोकन मनी देकर सर्वप्रथम अमीन को बुलवाकर जमीन का नापी करवा के उसपर टेंपरेरी पिलर डलवा देना चाहिए और कुछ दिनों के लिए उस जमीन पर निगरानी रखना चाहिए कि कहीं उस जमीन पर दिए गए पिलर को किसी ने उखाड़ तो नहीं दिया है| सामान्यत:एक दो महीने में जमीन के खरीदार के पास जमीन की सच्चाई का पता चल जाता है क्योंकि अगर जमीन किसी और की होगी या उसे पर कोई भूमि विवाद होगा तो एक दो महीने के अंदर उसे सूचना मिल जाएगी और वह आपसे संपर्क करेगा तो ऐसी स्थिति में आप उस जमीन को ना खरीदें| अंत में मैं यही कहूंगा कि सावधानी हटी दुर्घटना घटी| सावधान रहें सुरक्षित रहें| अपने जिंदगी भर की गाढ़ी कमाई को लूटने से बचाए, जानकारी ही बचाव है|
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