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हृदय-देवता रूप तुम्हारा आँखों में बसता है।

हृदय-देवता रूप तुम्हारा आँखों में बसता है।

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•

(पूर्व यू.प्रोफेसर)
हृदय-देवता रूप तुम्हारा आँखों में बसता है।
काँटों-भरी राह में बल चलने का मिलता है।
तुम्हें देखना चाहे जो मेरी आँखों में देखे,
अश्कफिशाँ आईनेचश्म में अक्स झलकता है।
मरहम आज लगाता है,था जख़्म दिया कल जिसने;
तेरी दुनिया का यारब दस्तूर अजब लगता है ।
बिना खुदी को खोए खुद को पाना नामुमकिन है,
कुदरत का इंसाफ भले नामौजूँ-सा दिखता है।
जैसा रंग चढ़ा आँखों पर वैसा ही एहसास,
तब जो बहुत बुरा लगता थाअबअच्छा लगता है।
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