आंसू और बहाने
महा कुंभ के आमंत्रण परआस्था गई नहाने
जाकर देखा संगम तटपे
दूर के ढोल सुहाने
पैदल चल के त्रिवेणी की
श्रद्धा चकनाचूर हुई
वीवीआईपी के कदमों से
तट की रेती धूर हुई
कुछ ने मन का पुण्य कमाया
कुछ जाके पछताने
आस्था को भी लगे भुनाने
राजनीति के झण्डे
मौका पाकर चिलम खींचते
घाट-घाट के पण्डे
नंगे सब पवित्र अवसर पर
डुबकी लगे लगाने
महा मण्डलेस्वर सब चुप हैं
चुप है सभी अखाड़े
सत्य बोलता नहीं मीडिया
चुप का झण्डा गाड़े
दुखद घड़ी में दिया बधाई
रंच नही शरमाने
जो होना था हुआ किन्तु था
सच को सच बतलाना
अपने हैं अपनो से कैसा
छिपना और छिपाना
डटकर करो सामना छोड़ो
आंसू और बहाने
*
~जयराम जय
'पर्णिका'11/1'कृष्ण विहार,आवास विकास,
कल्याणपुर,कानपुर -208017(उ प्र)
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