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नहीं अभागा कहता खुद को, निज जीवन इठलाता हूँ,

नहीं अभागा कहता खुद को, निज जीवन इठलाता हूँ,

बहुत दिया प्रभु ने हमको, सोच सोच कर मुस्काता हूँ।
जीवन पथ पर रोज़ रोज़ ही, दीन दुखी पीड़ित मिलते,
अपनी ख़ुशियों की तुलना, उसके सम्मुख झुक जाता हूँ।


अपने भी कुछ सपने हैं, जो बचपन में देखे हैं,
हो न सके जो पूरे, हम उनकी ख़ातिर रोते हैं।
मन्दिर में जाकर, कुछ चप्पल की फ़रियाद करें,
वह भी तो इस दुनिया में, जिनके पैर न होते हैं।


पढ़वाते पन्डित से कुण्डली, भविष्य की चिन्ता लेकर,
कभी हस्त रेखाओं का अध्यन, भविष्य की चिन्ता लेकर।
कर्म करें कुछ सुबह शाम तक, प्रभु कृपा का आभार करें,
बिना हाथ वाले कुंठित नहीं होते, भविष्य की चिन्ता लेकर।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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