दश दिव्यांशों से हुआ प्रस्फुटित मैं"
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पंकज शर्मा
दश दिव्यांशों की ज्वाला से निकला,
सूर्य के किरणों का दैदीप्य समेटे,
कालचक्र के प्रवाह से सिंचित,
प्रकृति के गर्भ से मैं हुआ प्रकट।
मुझमें है अग्नि, जल, वायु का संगम,
पृथ्वी की शक्ति, आकाश का आलिंगन,
रुद्र के हुंकार से गूँजित मन,
एकादश रूपों में विस्तृत तन।
धरा की पीड़ा को हरने आया,
संहार कर अंधकार मैं लाया,
नील कंठ की व्यथा को पढ़कर,
नवयुग की आशा जगाने आया।
भू-मंडल का संबल बनकर,
धर्म-अधर्म का मंथन कर,
सृजन, संहार और परिवर्तन का
नव संकल्प लेकर आया।
जब सृष्टि पुकारे, मैं प्रकट होऊँ,
जब अन्याय बढ़े, मैं तांडव करूँ,
कर उसे सृजित, हो सकूँगा सृजित मैं,
दश दिव्यांशों से हुआ प्रस्फुटित मैं।
. महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!
इस पावन रात्रि में, जब भगवान शिव तांडव नृत्य कर सृष्टि, पालन और संहार का संतुलन स्थापित करते हैं, समस्त ब्रह्मांड उनकी दिव्यता से आलोकित होता है। यह वही पावन क्षण है जब महादेव अपनी परम सत्ता से संसार के कण-कण को आशीर्वाद देते हैं।
महाशिवरात्रि हमें याद दिलाती है कि शिव केवल संहार के देव नहीं, बल्कि सृजन और संरक्षण के आधार भी हैं। उनके तांडव में ही सृष्टि का चक्र चलता है—जहाँ विनाश एक नए आरंभ का संकेत है और अज्ञानता का अंत ज्ञान का उदय।
आइए, इस महाशिवरात्रि पर हम भी शिव की उपासना करें, उनकी भक्ति में लीन हों और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सत्य, शिव और सुंदरता की ओर अग्रसर करें।
ॐ नमः शिवाय!
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