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महाशिवरात्रि : एक पावन पर्व !

महाशिवरात्रि : एक पावन पर्व !

महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान शिव को समर्पित होता है। महाशिवरात्रि का धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से विशेष महत्व है। इस दिन भक्तगण उपवास रखते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और भगवान शिव का जलाभिषेक एवं रुद्राभिषेक करके उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।

मृत्युञ्जयाय रुद्राय नीलकण्ठाय शम्भवे ।
अमृतेशाय शर्वाय महादेवाय ते नम: ॥

अर्थ : मृत्युंजय, रुद्र (वे, जिनसे असुरों को भय लगता है), नीलकण्ठ, शम्भु (कल्याणकारी), अमृतेश (अमृत के स्वामी), शर्व (मंगलमय), महादेव (देवताओं में श्रेष्ठ), ऐसे विविध नामों वाले भगवान शंकर को मैं वंदन करता हूं ।

प्रस्तावना : सनातन हिन्दू धर्म में उपासना की विविध पद्धतियां बताई गयी हैं । इसका कारण एक ही है कि प्रत्येक जीव अपने स्वभाव के अनुसार, लगन के अनुसार किसी भी पद्धति का आचरण कर उपासना करें एवं ईश्वर प्राप्ति करने का प्रयास करें। शिव की उपासना भी विविध पद्धतियों से की जाती है । शिव की उपासना में विशेषकर विविध व्रतों का विधान है । जैसे प्रदोष व्रत, सोलह सोमवार व्रत, हरितालिका आदि । शिवजी के उपासकों के लिए श्रावण मास भी विशेष महत्त्व रखता है । शिवजी से संबंधित वार अर्थात सोमवार या तिथी अर्थात शिवरात्रि को शिवभक्त उपवास रखते हैं । आज महाशिवरात्री व्रत के बारे मे जानकारी इस लेख से समझते हैं । तथा भगवान शिव से जुड़े विशेष प्रतीक और उनका महत्व, कुछ तीर्थ के बारे में इस लेख से अवगत होंगे।

महाशिवरात्रि क्यों मनाते है ? - ‘महाशिवरात्रि’ के काल में भगवान शिव रात्रि का एक प्रहर विश्राम करते हैं । महाशिवरात्रि दक्षिण भारत एवं महाराष्ट्र में माघ कृष्ण चतुर्दशी तथा उत्तर भारत में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाई जाती है । इस वर्ष महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025 को है । संपूर्ण देश में महाशिवरात्रि बडे उत्‍साह से मनाई जाती है । पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।

महाशिवरात्रि का महत्त्व क्या है ? - महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव जितना समय विश्राम करते हैं, उस काल को ‘प्रदोष’ अथवा ‘निषिथकाल’ कहते है । पृथ्वी का एक वर्ष स्वर्गलोक का एक दिन होता है । इस समय भगवान शिव ध्यानावस्था से समाधि-अवस्था में जाते हैं । उपवास, पूजा और जागरण यह महाशिवरात्रि व्रत के 3 अंग हैं । इस काल में किसी भी मार्ग से की गई शिव उपासना करने से, जाने-अनजाने में उपासना होने पर भी अथवा उपासना में कोई दोष अथवा त्रुटी भी रह जाए, तो भी उपासना का 100 प्रतिशत लाभ होता है । इस दिन शिव-तत्त्व अन्य दिनों की तुलना में एक सहस्र गुना अधिक होता है । इस दिन की गई भगवान शिव की उपासना से शिव-तत्त्व अधिक मात्रा में ग्रहण होता है ।

भगवान् शिव के विशेषताएं : भगवान शिव का स्वरूप अत्यंत अलौकिक और रहस्यमय है। वे विभिन्न वस्त्र, आभूषण और प्रतीक धारण करते हैं, जो उनके विभिन्न गुणों और ब्रह्मांडीय शक्तियों का प्रतीक होते हैं।

डमरू - शिवजी के डमरू से निकले 52 सुरों से, यानी 52 ध्वनियों से, नाद-बीज या बीज-मंत्र (52 अक्षर) उत्पन्न हुए और उनसे ब्रह्माण्ड की रचना हुई। नाद निरंतर प्रवाह की प्रक्रिया है। ध्वनि के इन्हीं बीजों से द, द, दम, यानी ददामि त्वम् । (मैं तुम्हें दे रहा हूँ) ध्वनि उत्पन्न हुई। ऐसा लगा जैसे शिव ने ब्रह्माण्ड को आश्वासन दिया हो कि मैं तुम्हें आध्यात्मिक ज्ञान, पवित्रता और तप प्रदान करता हूँ।

त्रिशूल - महादेव का त्रिशूल प्रकृति के तीन प्रारूप - आविष्कार, पोषण और विनाश को भी प्रदर्शित करता है। साथ ही तीनों काल भूत, वर्तमान और भविष्य भी इस त्रिशूल में समाते हैं। भगवान शिव के हाथों में शोभा पाने वाला त्रिशूल में तीन गुण होते है उनका अर्थ है सत्व, रज और तम।

नाग - भगवान शिव के आभूषणों में नागों का विशेष स्थान है। वे गले में वासुकी नाग को धारण करते हैं, जो उनके काल-निर्वाहक स्वरूप को दर्शाता है। कहा जाता है कि विश्व में नौ प्रमुख नाग हैं, जिन्हें "नवनारायण" कहा जाता है। नवनाथों की उत्पत्ति भी इन्हीं नवनारायणों से मानी जाती है।

भस्म - शिव अपने पूरे शरीर पर भस्म (राख) धारण करते हैं। यह भस्म उनके वैराग्य, विनाश और पुनर्जन्म के चक्र का प्रतीक है। शास्त्रों में भस्म को "शिव का वीर्य" भी कहा गया है, जो उनकी सृजन और संहार शक्ति को दर्शाता है।

रुद्राक्ष - शिव के शरीर पर रुद्राक्ष की मालाएं देखी जाती हैं। वे इन्हें अपने जटा, गले, हाथ, कलाई और कमर पर धारण करते हैं। रुद्राक्ष भगवान शिव के अश्रुओं से उत्पन्न हुआ माना जाता है और इसे धारण करने से आध्यात्मिक शक्ति और शांति प्राप्त होती है।

व्याघ्रांबर (बाघ की खाल) - भगवान शिव व्याघ्रांबर (बाघ की खाल) पहनते हैं, जो उनके द्वारा रज-तम गुणों (आसुरी प्रवृत्तियों) के विनाश का प्रतीक है। यह इस बात का संकेत है कि शिव न केवल सृष्टि के संहारक हैं, अपितु वे तमोगुण (अज्ञान) और रजोगुण (वासना) को समाप्त कर आध्यात्मिक उत्थान करने वाले भी हैं।

तांडव-नृत्य - संपूर्ण ब्रह्मांड का नियंत्रण शिव के तांडव-नृत्य में निहित है, नटराज शिव का दूसरा नाम है। जब उनका तांडव-नृत्य आरंभ होता है, तो उसकी प्रतिध्वनि ब्रह्मांड की कार्यप्रणाली को गति प्रदान करती है और जब उनका नृत्य समाप्त होता है, तो वे इस संपूर्ण ब्रह्मांड को स्वयं में विलीन कर देते हैं और अपने शाश्वत आनंद में लीन हो जाते हैं ।

महाशिवरात्रि के दिन ये अवश्य करें !
  1. भगवान शिव का नामजप दिनभर करें ।
  2. शिवपिंडी का अभिषेक करें ।
  3. भगवान शिव की श्वेत अक्षत, श्वेत पुष्प, बेल चढाकर पूजा करें ।
  4. भगवान शिव के मंदिर में दर्शन लेने जाएं ।
यह सब जानकारी समझने के बाद भगवान शिव की उपासना करने का महत्व समझ में आया होगा। शिव उत्तर दिशा में स्थित कैलास पर्वत पर ध्यान करते हैं तथा सम्पूर्ण जगत पर दृष्टि रखते हैं। वे स्वयं साधना करते हैं तथा दूसरों की आध्यात्मिक उन्नति सुनिश्चित करते हैं। भगवान शिव जैसी ईश्वरभक्ति सभी जीवो में निर्माण हो। तथा शीघ्रता से ईश्वरीराज्य पुनः स्थापित हो यही प्रार्थना भगवान शिव जी के चरणों में करते है। सन्दर्भ : सनातन द्वारा रचित ग्रन्थ "शिव"
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