हिन्दी काव्य-साहित्य के गौरव स्तम्भ हैं आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री
- साहित्य सम्मेलन में मनायी गयी जयंती, मथुरा प्रसाद दीक्षित और पं शिवदत्त मिश्र भी किए गए स्मरण
पटना, ४ फरवरी। गीत के शलाका-पुरुष आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री बिहार के ही नहीं, अपितु हिन्दी काव्य-साहित्य के गौरव-स्तम्भ हैं। एक ऐसा प्रकाश-स्तम्भ जो पीढ़ियों का मार्ग प्रशस्त करता है। वे संस्कृत और हिन्दी के वरेण्य साहित्यकार तो थे ही संगीत के भी बड़े तपस्वी साधक थे। कवि-सम्मेलनों की वे एक शोभा थे। अपने कोकिल-कंठ से जब वे गीत को स्वर देते थे, हज़ारों-हज़ार धड़कने थम सी जाती थी। कवि-सम्मेलनों के मंच पर उनकी बराबरी राष्ट्र-कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' और गीतों के राज कुमार गोपाल सिंह नेपाली के अतिरिक्त कोई भी नहीं कर सकता था।
यह बातें मंगलवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, यदि बिहार में जानकी जी और नेपाली जी नहीं होते तो हिन्दी साहित्य से गीत की अकाल मृत्यु हो जाती। शास्त्री जी ने अपनी साहित्यिक-यात्रा संस्कृत-काव्य से आरंभ की थी। किंतु महाप्राण निराला के निर्देश पर उन्होंने हिन्दी में काव्य सृजन आरंभ किया और देखते हीं देखते गीत-संसार के सुनील आसमान में सूर्य के समान छा गए। साहित्य की सभी विधाओं में जी भर के लिखा। कहानी, उपन्यास, संस्मरण, नाटक और ग़ज़लें भी लिखी।
साहित्य सम्मेलन के संस्थापकों में से एक आचार्य मथुरा प्रसाद दीक्षित और सम्मेलन के उपाध्यक्ष रहे पं शिवदत्त मिश्र जी को भी उनकी जयंती पर श्रद्धा-पूर्वक स्मरण किया गया। डा सुलभ ने कहा कि, शिवदत्त जी एक संवेदनशील कवि और दार्शनिक-चिंतन रखने वाले साहित्यकार थे। 'कैवल्य' नामक उनके ग्रंथ में, उनकी आध्यात्मिक विचार-संपन्नता और चिंतन की गहराई देखी जा सकती है। वे साहित्य में उपभोक्ता-आंदोलन के भी प्रणेता थे। साहित्य-सम्मेलन के उद्धार के आंदोलन में उनकी अत्यंत मूल्यवान और अविस्मरणीय भूमिका रही।
डा सुलभ ने कहा कि मथुरा प्रसाद दीक्षित उन साहित्यिक स्वतंत्रता-सेनानियों में से थे, जिन्हें बिहार में गाँधी जी के प्रथम स्वागत का अवसर प्राप्त हुआ था। गाँधी जब बिहार आए तो उनका पहला नागरिक अभिनन्दन मुज़फ़्फ़रपुर में हुआ था, जिसमें दीक्षित की शीर्षस्थ भूमिका थी। यहीं से वे चंपारण गए, जहाँ उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी।
सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यार जियालाल आर्य, डा मधु वर्मा, डा रमेश पाठक, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी बच्चा ठाकुर, प्रो प्रतिभा सहाय, आनन्द किशोर मिश्र और बाँके बिहारी साव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ स्वर्गीय मिश्र की पत्नी और कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, डा पुष्पा जमुआर, श्याम बिहारी प्रभाकर, कुमार अनुपम, शमा कौसर शमा, डा शालिनी पाण्डेय, मधुरानी लाल, ईं अशोक कुमार, पं गणेश झा, जय प्रकाश पुजारी, शंकर शरण आर्य, सिद्धेश्वर, राज आनन्द, डा शमा नासनीन नाजां, सदानन्द प्रसाद, सुनीता रंजन, मृत्युंजय गोविंद, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, नहार कुमार सिंह 'निर्मल', अजीत कुमार भारती आदि कवियों और कवयित्रियीं ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
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