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नई धारा

नई धारा

बहा दो भारत में नई धारा ,
नवशक्ति का संचार करो ।
झूमा दे हमें वह शक्ति देकर ,
भारत में ऐसी बयार भरो ।।
बहा दो सड़ी गली लकडियाॅं ,
कूड़ा कचड़ा ये साफ करो ।
हो जाए राष्ट्रभक्तों से गलती ,
उसको जरूर माफ करो ।।
मोड़ दो पुरानी धारा को तुम ,
नई धारा का विस्तार करो ।
नये युग के इस नए दौर में ,
न कलियुगी तुम प्यार करो ।।
प्यार करो व स्वीकार करो ,
आदर स्नेह मत इंकार करो ।
आए सच्चे प्यार में बाधा ,
संघर्ष करने को तैयार करो ।।
प्राणों से प्यारा राष्ट्र हमारा ,
दुश्मन से ऑंखें न चार करो ।
भारत की तूती है दुनिया में ,
भारत को नहीं शर्मसार करो ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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