जाने कितनी बार तेरी, गलियों से गुजरा हूँ,
होगा कभी दीदार, तेरी गलियों से गुजरा हूँ।कभी झरोखे या खिड़की से मुझको देखेगी,
इसी सोच के साथ, तेरी गलियों से गुजरा हूँ।
कल की लगती बात, मिले थे हम दोनों,
बरस बीत गये साठ, मिले थे हम दोनों।
कभी कभी तो, उस बगिया भी जाता हूँ,
वो पूनम की थी रात, मिले थे हम दोनों।
जाने कैसी हवा चली, हम बिछुड़ गये,
उम्र बीत गयी, दरश को भी तरस गये।
नहीं भुला पाये तुमको हम ख़्यालों में भी,
याद तुम्हारी जब आई, नयन बरस गये।
अ कीर्ति वर्द्धन
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