आस्था की डुबकी
आस्था की है लगी डुबकी सदा देखा,भक्ति के नव रंग में सबको रँगा देखा।
कुम्भ मेला को इलाहाबाद के पथ पर,
संत नागा साधुओं से नित भरा देखा।
भीड़ का उमड़ा हुजूम जयघोष हैं करते,
धूल से घुटने पावों तक को सना देखा।
अलौकिक छटा का अद्भुत नज़ारा,
तीनों ही जगह में ऐसा ही समाँ देखा।
तीनों जगह : हरिद्वार, उज्जैन, नासिक
गंगा के निर्मल जल में स्नान करते,
मनुष्य के पापों को हरते हुए देखा।
श्रद्धा और विश्वास का ऐसा संगम,
जहाँ हर कोई डूबा भक्ति में देखा।
नागा साधु अपनी धूनी रमाते,
ज्ञान और वैराग्य का पाठ पढ़ाते।
भस्म रमा कर, जटाएँ बढ़ा कर,
जीवन के सत्य का मार्ग दिखाते।
कहीं पंडालों में प्रवचन चलते,
कहीं भजन-कीर्तन गूंजते रहते।
हर चेहरे पर एक दिव्य आभा,
जैसे ईश्वर का साक्षात्कार करते।
दूर-दूर से यात्री यहाँ आते,
अपने कष्टों को प्रभु को सुनाते।
मन की शांति और मोक्ष की कामना,
लेकर वापस अपने घर को जाते।
कुम्भ मेला एक अद्भुत अनुभव,
जहाँ भक्ति और आस्था का होता संगम।
इसे देखकर मन में यही विचार आता,
काश! हर साल ऐसा ही समाँ होता।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से"
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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