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पडे -पड़े पाँवों में कितना अरसा गुज़र गया।

पडे -पड़े पाँवों में कितना अरसा गुज़र गया।

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
पडे -पड़े पाँवों में कितना अरसा गुज़र गया।
कब पतझर,कब फस्लेगुल,कब जलसा गुजर गया।
खुशी-खुशी सब रंज सहा कुद्रत ने जो ढाया।
उठा गोद में अब ले लो, माँ!अरसा गुज़र गया।
काइनात मन का प्रपंच, औ जादू कुद्रत का,
दुख पहाड़-सा सुख जीवन में पल-सा गुज़र गया।
बुज़दिल को खिताब वीर का, हत्यारे की पूजा,
तवारीख को कर घायल तंज तीर-सा गुज़र गया।
खौफनाक जुल्मत अंधे भक्तों ने फैलायी,
लगता है अब लोकतंत्र का शम्सा गुज़र गया।
लिये सलीब हाथ में घूम रहे फासी सुफहा,
खुला हुआ पैंडोरा का ज्यों बक्सा गुज़र गया।
(सुफहा =अधम,नीच,'सफ़ीह 'का बहुवचन)
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