भारत का माटी स्वयं सोना ,
जन सोने में सोना ढूॅंढ़ रहे ,जिसने माटी सोना बनाया ,
उसी को देख जन कूढ़ रहे ।
भारत का माटी स्वयं सोना ,
सोना देख सबका है रोना ,
सोना छूते ये हो जाए माटी ,
चमचा बनकर तलवा चाटी ।
भारत को बनाया है महान ,
पर निज सदैव जो दृढ़ रहे ,
भारत का माटी स्वयं सोना ,
जन सोने में सोना ढूॅंढ़ रहे ।
पथगामी को जिसने कोसा ,
राष्ट्रहेतु उसका क्या भरोसा ,
नहीं कदम कभी बढ़े ठोसा ,
उल्टा संस्कृति जो है पोसा ।
उल्टे देते उसको सब दोष ,
जो कदम सार्थक गूढ़ रहे
भारत का माटी स्वयं सोना ,
जन सोने में सोना ढूॅंढ़ रहे ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com