गुलाब दिवस
धन्य गुलाब परवरिश तेरा ,जन्म लिया गुल के अंग में ।
जन्म लिए हर काॅंटे गुल से ,
कैद किया तुम्हें ही संग में ।।
एक विभीषण रावण दल में ,
शेष दल में सारे ही दुष्ट थे ।
थे सारे दुष्ट ही भरे वहाॅं पर ,
फिर भी सब वहाॅं संतुष्ट थे ।।
रावण दल सम काॅंटे ये सारे ,
फिर भी संग वास करते हो ।
भरे पड़े हैं तन बिंधने वाले ,
फिर भी नहीं तुम डरते हो ।।
दुर्जन बीच में सज्जन होकर ,
अपना सुगंध तुम फैलाते हो ।
विषधर बीच में चंदन बनकर ,
यश स्वयं तुम खूब पाते हो ।।
माली होता है तेरा रखवाला ,
माला हेतु तुम्हें तोड़ लेता है ।
तुम्हें तोड़ चल देता घर अपने ,
काॅंटों से मुख मोड़ लेता है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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