दिल्ली ने दिल ली दिल देकर
एक ने लौटाया दिल्ली का दिल ,निकल चला निज दिल लेकर ।
भाई गया अब दूसरे का दिल ,
दिल्ली ने दिल ली दिल देकर ।।
हुआ है दिल्ली से दिल का सौदा ,
खींच दी गई अब लक्ष्मण रेखा ।
वह रावण अब तो भस्म होगा ,
जिसने लक्ष्मण रेखा न देखा ।।
दिल लुटाया है दिल्ली वालों ने ,
स्वस्थ निरोग दिल वह पाया है ।
राष्ट्र में अपनाया जो गरीबों को ,
उसीको दिल्ली ने अपनाया है ।।
बढ़ चढ़कर जो लूटा है दिल को ,
बढ़ चढ़कर ही दिल लूटाया है ।
जो दिल निकला सड़ा गला सा ,
वह दिल दिल्ली ने लौटाया है ।।
किसी का दिल गंगा तट बना है ,
किसी का बना है दिल दलदल ।
दिल्ली दिल के दलदल से बचा है ,
गया जिसके दिल में कल बल ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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