मेरा नसीब
चक्र संसार का चलता रहता।आते जाते जीवन में सुख दुख।
कैसे उनमें जिया जाता है।
ये सच में तुमने सिखाया दिया।।
पग पग पर कांटे बिछे थे।
तुमने आकर हटा दिये।
अपने राम के पथ पर तुमने।
फूलों को कैसे बिछा दिया।।
तेरी तकदीर से बदल गया।
मेरा जो ये नसीब आज।
सच में तुम कोई अवतारी हो।
या हो दुर्गा-लक्ष्मी का रूप।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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