दुनिया का रंग
दुनिया बहुत रंगीन है
मगर रंग दिखता नही।
शोले बहुत है इसमें
मगर वो दिखते नही।
रखते है इरादा हम भी
दुनिया को समझने का।
और रंग इसमें भरना है
इसको रंगीन करने को।।
दुनियादारी के चक्करों को
कैसे कोई समझ सके।
बहुत झोल झमेले है
हम सबके जीवन में।
इसलिए सब भाग रहे
कुछ न कुछ करने को।
जिससे रंगीन बना सके
अपने इस जीवन को।।
अंतर मन की कल्पनाएँ
उछल रही है जोरों से।
सब कुछ तो रंगीन है
पर खुदके रंग अधूरे है।
खुल्लकर तुम जीना सीखो
और अपनी बात कहो तुम।
तेरा रंग रूप खिल जायेगा
जब तुम इसमें भरोगे रंग।।
जय जिंनेद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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