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था जिनसे इश्क़ हमको, जाने कहाँ वो खो गये

था जिनसे इश्क़ हमको, जाने कहाँ वो खो गये,

रात भर ख्वाबों में रहते, जाने कहाँ वो खो गये?
गली कूँचे गाँव शहर, सब जगह उनको तलाशा,
नयन व्याकुल दीदार को, जाने कहाँ वो खो गये?


कुछ ग़लतियाँ हमने भी की थी, उनसे प्यार में,
तकरार भी अपनी हुई थी, उनसे व्यवहार में।
पर नहीं भूले कभी, दिन रात उनकी याद आती,
न कभी उसने मनाया, न जा सके हम अहंकार में।


याद उसकी हर पल आती, वह इबादत है मेरी,
जाने कहाँ किस हाल में है, वह इबादत हैं मेरी।
चाहत मेरी एक बार, दीदार उसका कर सकूँ,
कुछ आँसू उसको समर्पित, वह इबादत है मेरी।

अ कीर्ति वर्द्धन
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