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बाबर व अकबर के शासन काल में हिंदू दमन

बाबर व अकबर के शासन काल में हिंदू दमन

  • अकबर के हरम में हिन्दू महिलाओं की स्थिति
अपने हरम को हिन्दू महिलाओं से भरने के लिए अकबर ने अनेकों हिन्दू राजकुमारियों के साथ जबरन शादियाँ की थीं, परन्तु कभी भी, किसी मुगल महिला को हिन्दू से शादी नहीं करने दी। केवल अकबर के शासनकाल में 38 राजपूत राजकुमारियाँ शाही खानदान में ब्याही जा चुकी थीं। 12 अकबर को, 17 शाहजादा सलीम को, छः दानियाल को, 2 मुराद को और 1 सलीम के पुत्र खुसरो को।

अकबर बहुत ही चरित्रहीन व्यक्ति था। उसे भारतीय राजाओं की परम्परा में राजा के आवश्यक गुणों की कसौटी पर यदि कसकर देखा जाए तो उसमें राजा का एक भी गुण नहीं था। हिन्दू महिलाओं के साथ उसने जिस प्रकार के अत्याचार किए और उन्हें अपने हरम में भर-भरकर जिस प्रकार उन्हें केवल खेती समझा, उससे उसके चरित्र का वह पक्ष प्रकट होता है जिसके चलते उसने हिन्दू महिलाओं को अपनी वासना और व्यभिचार का जी भरकर शिकार बनाया। उसने गोंडवाना की रानी दुर्गावती को भी अपनी वासना का शिकार बनाना चाहा था।

जिसका उल्लेख आर०सी० मजूमदार ने 'दी मुगल एंपायर' खंड 7 में किया है। वह लिखते हैं -

सन् 1564 में अकबर ने अपनी हवस की शान्ति के लिए रानी दुर्गावती पर आक्रमण कर दिया, किन्तु एक वीरतापूर्ण संघर्ष के बाद अपनी हार निश्चित देखकर रानी ने अपनी ही छाती में छुरा घोंपकर आत्म हत्या कर ली। किन्तु उसकी बहिन और पुत्रवधू को बन्दी बना लिया गया और अकबर ने उसे अपने हरम में ले लिया। उस समय अकबर की उम्र 22 वर्ष और रानी दुर्गावती की 40 वर्ष थी। (आर.सी. मजूमदार, दी मुगल ऐम्पायर खंड - 6)

वास्तव में अकबर का हिन्दू महिलाओं के प्रति इस प्रकार का दृष्टिकोण उसे अपने मजहब से विरासत में प्राप्त हुआ था। जहाँ पर आज भी यह मान्यता है कि यदि हिन्दू लड़की को गर्भवती किया जाए तो जन्नत में जाने का हक मिल जाता है। इसलिए अकबर के मन मस्तिष्क में भी यही सोच काम कर रही थी। यही कारण था कि वह हिन्दू महिलाओं को अपने हरम में भरने के लिए मीना बाजार लगाया करता था। जहाँ से वह अपनी मनपसंद हिन्दू महिला को अपने सेवकों, सैनिकों और कभी-कभी स्वयं भी उठवाकर मँगवा लिया करता था।

व्यभिचारी अकबर और हिन्दू समाज

तनिक कल्पना कीजिए कि उस समय बादशाह की इस प्रकार की गतिविधियों को हिन्दू समाज कितना अनुचित और अपमानजनक मानता होगा? विशेष रूप से तब जबकि नारी जाति का सम्मान करना और किसी दूसरे की बहन बेटी को अपनी बहन बेटी और माता के समान समझना हिन्दू समाज का प्राचीन संस्कार रहा हो। तब किसी ऐसे व्यभिचारी भूखे भेड़िए को ऐसे हिन्दू समाज के लिए सहन करना कितना कठिन हो गया होगा?

स्पष्ट है कि ऐसी परिस्थितियों में हिन्दू समाज के वीर योद्धा अपनी बहन बेटियों के सम्मान के लिए बार-बार विद्रोह के लिए मचलते रहे होंगे। यही कारण है कि अकबर सहित किसी भी मुगल बादशाह को इन वीर योद्धाओं की जवानी ने कभी चैन की नींद सोने नहीं दिया।

हमें इस विषय में यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जब सामान्य हिन्दू परिवार अपनी बहन बेटी को बादशाह की इस प्रकार की वासना की भूख का शिकार होते देखते होंगे या उसके कर्मचारियों के ऐसे अपमानजनक व्यवहार को देखते होंगे तो उनका क्रोध किसी सामान्य मुगल कर्मचारी या मुस्लिम पर फूटता होगा। जैसा कि हम आजादी से पूर्व भारत के लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध भड़कते हुए देखा करते थे। उस परिस्थिति में अकबर या किसी भी मुगल बादशाह के प्रतिनिधि के रूप में उन सामान्य मुस्लिम या कर्मचारियों को अपने सामने खड़े देखकर हिन्दू जन उन पर टूट पड़ते होंगे। इसी से विद्रोह की आग स्थान स्थान पर फैल जाया करती थी।

विद्रोह की इस आग को ही आज के संदर्भ में साम्प्रदायिक दंगे कहना चाहिए। क्योंकि ये विद्रोह शासन की साम्प्रदायिक सोच के विरुद्ध भड़की हुई हिंसा हुआ करते थे। उस समय इन दंगों को सांप्रदायिक शासकों का संरक्षण प्राप्त होता था। जिस कारण तत्कालीन इतिहास लेखक दंगों को अपने राजनीतिक नायकों की इच्छा के अनुरूप लिख दिया करते थे। घटनाओं के पीछे के उस सच को कभी नहीं लिखा जाता था जो हिन्दुओं को मुस्लिम शासकों के विरुद्ध बार-बार विद्रोह करने के लिए प्रेरित करता था।

क्या होते हैं साम्प्रदायिक दंगे?

वास्तव में दंगे किसी सम्प्रदाय विशेष की साम्प्रदायिक सोच के विरुद्ध भड़की हुई हिंसा होती है। जिसे कोई एक वर्ग जब सहन करने से इंकार कर देता है तो क्रोध बेलगाम होकर बाहर आ जाता है। ऐसा ही हम आज भी देखते हैं। मेरठ जैसे जिन शहरों में रह-रहकर साम्प्रदायिक दंगे भड़कते हैं उनके पीछे के कारणों पर यदि विचार किया जाए तो पता चलता है कि हिन्दुओं की बहन बेटियों को मुस्लिमों के लड़के अपनी गलियों से जब निकलना कठिन कर देते हैं और उनके विरुद्ध अभद्र व अशोभनीय व्यवहार करने तक उतर आते हैं तब किसी ना किसी हिन्दू युवक का खून खौल उठता है।

तब हम देखते हैं कि वह प्रतिशोध का भाव साम्प्रदायिक दंगे का रूप ले लेता है। कांग्रेस और वामपंथी विचारधारा के लोग इन साम्प्रदायिक दंगों को कुछ इस प्रकार व्याख्यायित और परिभाषित करते हैं कि जैसे दंगों में दोनों सम्प्रदायों में से हिन्दुओं का ही अधिक दोष था। इनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण सच सामने नहीं आ पाता, अन्यथा यदि सच को स्वीकार करने का साहस इनके भीतर हो तो स्पष्टतः प्रावधान किया जाए कि कोई भी सम्प्रदाय और विशेष रूप से मुस्लिम सम्प्रदाय हिंदूओं की बहन बेटियों के साथ किसी भी प्रकार का अशोभनीय व्यवहार नहीं करेगा और यदि ऐसा करता पाया जाता है तो उसके विरुद्ध कठोर कार्यवाही होगी।

'पीठ पर दाग' का अभिप्राय

हम अपने हिन्दू समाज में आज भी एक मुहावरा प्रचलित होते हुए देखते हैं कि 'मेरी पीठ पर दाग लगा हुआ है।' इसको हमारे हिट समाज के लोग तब प्रयोग करते हैं जब कोई अपमानजनक घटना उनके साथ घटित हो गई होती है। उस अपमानजनक घटना का प्रतिशोध जब तक वह नहीं ले लेता है, तब तक उसे चैन नहीं आता है। वास्तव में यह मुहावरा अलाउद्दीन खिलजी के समय से प्रचलित है। अलाउद्दीन खिलजी ने पहली बार यह परम्परा स्थापित की थी कि यदि कोई हिन्दू शासक उसकी अधीनता स्वीकार कर लेता था तो उसके घोड़े की पीठ पर शाही दाग लगा दिया जाता था। जिससे कि यह पता चल जाए कि इस घोड़े पर बैठने वाला राजा अलाउद्दीन खिलजी का गुलाम है।

इस दाग को हमारे राजा और वीर योद्धा कभी भी सहज रूप में स्वीकार नहीं करते थे। वह इस दाग को मिटाने के लिए संकल्पित हो उठते थे। बाद में अन्य मुस्लिम शासकों के समय के लिए भारतीयों ने इसे एक मुहावरे के रूप में स्थापित कर लिया। यह मुहावरा वास्तव में हिन्दुओं का एक विकल्पविहीन संकल्प होता था। उस संकल्प की पूर्ति के लिए वह जीवन खपा देते थे। कहने का अभिप्राय है कि जिस हिन्दू समाज में पीठ पर लगे दाग को धोने की परम्परा बड़ी गहराई से पैठ जमाये बैठी हो, उसमें मुस्लिमों के द्वारा किये गए किसी भी अपमानजनक व्यवहार को वे कैसे सहन कर सकते थे? अतः स्पष्ट है कि प्रत्येक अपमानजनक कार्यवाही से प्रतिरोध का लावा फूटता था, वही प्रतिरोध विद्रोह या साम्प्रदायिक दंगे का रूप ले लेता था। उनके इस भाव और भावना को इतिहास में सही ढंग से निरूपित नहीं किया है।

भारत में साम्प्रदायिक दंगे क्यों होते थे? यदि इस पर निष्पक्षता से चिन्तन किया जाए और उस चिन्तन को बहुत ईमानदारी से इतिहास में स्थान दिया जाए तो भारत के बारे में यह तथ्य स्पष्ट हो जाएगा कि यहाँ पर जब से मुसलमान आए तब से साम्प्रदायिक दंगे आरम्भ हुए और यदि वे आज भी होते हैं तो उनके पीछे मुस्लिमों का हिन्दू समाज की बहन बेटियों के प्रति अपनाया जाने वाला दुव्र्यवहार मुख्य कारण होता है।

देश का भारी दुर्भाग्य

वास्तव में देश का दुर्भाग्य यह है कि जिस व्यभिचारी और हिंदू बहन-बेटियों को अपमानित करने वाले अकबर को इस देश का महान शासक बताया
जाता है, उसी का अनुसरण करने वाले आज के अकबरों को भी महानता प्राप्ति का चस्का लगा दिया गया है कि हिन्दू बहन-बेटियों को उठाओ और अकबर की भाँति महान कहलाओ।

अकबर के विषय में हमें यह भी पता चलता है कि अकबर द्वारा राजकुमार जयमल की हत्या के पश्चात् जब उसकी वीरांगना पत्नी अपनी अस्मिता की रक्षार्थ घोड़े पर सवार होकर सती होने जा रही थी और जब उस सुन्दर वीरांगना पर व्यभिचारी अकबर की कुदृष्टि पड़ी तो अकबर ने रास्ते में ही पकड़ लिया।

श्मशान घाट जा रहे उसके सगे सम्बन्धियों को वहीं से कारागार में सड़ने के लिए भेज दिया और राजकुमारी को अपने हरम में ठूंस दिया।

जिनके हरम में हजारों हिंदू ललनाएँ थीं सड़ीं,
सम्मान की रक्षार्थ जिनसे वीरांगनायें थी लड़ीं।
उन मुगलों के शासन को कैसे कहें आदर्श हम ?
देश धर्म की रक्षार्थ जिनसे हमारी सेनाएँ थीं भिड़ीं ।।

अबुल फजल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है-

अकबर के हरम में पाँच हजार औरतें थीं और ये पाँच हजार औरतें उसकी 36 पत्नियों से अलग थीं। शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था। वहाँ इतनी वेश्याएँ इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी। अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी। कई बार सुन्दर लड़कियों को ले जाने के लिए लोगों में झगड़ा भी हो जाता था। एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया।

इस्लामिक शरीयत के अनुसार किसी भी मुस्लिम राज्य में रहने वाले गैर मुस्लिमों को अपनी संपत्ति और स्त्रियों को छीनने से बचाने के लिए इसकी कीमत देनी पड़ती थी, जिसे जजिया कहते थे।

वास्तव में जजिया कर भी उस समय हिन्दुओं के भीतर अपमान का भाव पैदा करने वाली शासन की एक ऐसी क्रूर नीति थी जिसे हिन्दू समाज ने कभी अपनाया नहीं। इस जजिया कर के प्रति भी हिन्दू सदा विद्रोही रहा। ऐसे अवसर भी आते रहे होंगे जब मुस्लिम अधिकारी हिन्दुओं से जजिया कर वसूलने के नाम पर अत्याचार करते होंगे और हिंदू उनका विरोध करते होंगे। तब ऐसी घटनाओं को लेकर भी कई बार साम्प्रदायिक दंगे भड़कते रहे होंगे।

अकबर का 'फतहनामा'

मध्यकालीन इतिहास में जब मुगल और उनसे पहले तुर्क भारतवर्ष में अपने अत्याचारों के माध्यम से हिन्दू उत्पीड़न के कार्यों में लगे हुए थे, उस समय एक प्रकार से ये लोग दंगाइयों के रूप में ही घूम रहे थे। हिन्दू अस्मिता से खिलवाड़ करना और हिन्दू विनाश करना इनका उद्देश्य था। अकबर ने अपने इस मजहबी कर्त्तव्य की पूर्ति के लिए चित्तौड़ की विजय के पश्चात् जो फतहनामा जारी करवाया था उसमें भी उसने अपने हिन्दू द्वेष को स्पष्ट रूप से प्रकट किया था। इस 'फतहनामा' में अकबर ने स्पष्ट रूप से लिखवाया था कि :-

अल्लाह की ख्याति बढ़े इसके लिए हमारे कर्त्तव्यपरायण मुजाहिदीनों ने अपवित्र काफिरों को अपनी बिजली की तरह चमकीली कड़कड़ाती तलवारों द्वारा वध कर दिया। हमने अपना बहुमूल्य समय और अपनी शक्ति घिप्ता (जिहाद) में ही लगा दिया है और अल्लाह के सहयोग से काफिरों के अधीन बस्तियों, किलों, शहरों को विजय कर अपने अधीन कर लिया है, कृपालु अल्लाह उन्हें त्याग दे और उन सभी का विनाश कर दे। हमने पूजा स्थलों, उसकी मूर्तियों को और काफिरों के अन्य स्थानों का विध्वंस कर दिया है।" (फतहनामा-ए-चित्तौड़, मार्च 1586, नई दिल्ली) अकबर के एक दरबारी इमाम अब्दुल कादिर बदायूँनी ने अपने इतिहास अभिलेख, मुन्तख़ाब-उत-तवारीख में लिखा था कि "1576 में जब शाही फौजें राणाप्रताप के खिलाफ युद्ध के लिए अग्रसर हो रही थीं तो मैंने युद्ध अभियान में शामिल होकर हिन्दुओं के रक्त से अपनी इस्लामी दाढ़ी को भिगोकर शहंशाह से भेंट की अनुमति के लिए प्रार्थना की। मेरे व्यक्तित्व और जिहाद के प्रति मेरी निष्ठा भावना से अकबर इतना प्रसन्न हुआ कि उन्होंने प्रसन्न होकर मुझे मुट्ठी भर सोने की मुहरें दे डालीं (मुन्तखाब-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदायूँनी, खण्ड II, पृष्ठ 383, अनुवाद वी. स्मिथ, अकबर दी ग्रेट मुगल, पृष्ठ 108)

इसी प्रकार के अन्य अनेकों उदाहरण, तथ्य और साक्ष्य प्रमाण रूप में हमारे पास उपलब्ध हैं जो यह स्पष्ट करते हैं कि अकबर सहित कोई भी मुगल हिन्दुओं के प्रति उदारता का दृष्टिकोण या नीति अपनाने का समर्थक नहीं था। उनके लिए सबसे पहले मज़हब था। साम्प्रदायिक सोच के आधार पर वह अपना शासन चलाना उचित मानते थे।

इसके उपरान्त भी यदि अकबर को भारत प्रेमी और हिन्दू प्रेमी करके दिखाया जाता है तो वह सारा का सारा दुष्प्रचार केवल हिन्दू समाज को कलंकित और अपमानित करने के लिए किया जाता है। देश की वर्तमान युवा पीढ़ी पर इसका दुष्प्रभाव यह पड़ रहा है कि धीरे-धीरे नई पीढ़ी पर जितनी अधिक अकबर की तथाकथित उदारता थोपी जाती है उतनी ही वह मानसिक रूप से नपुंसक होती जा रही है। उसे महाराणा प्रताप में दोष और अकबर की महानता में सर्वत्र पवित्रता दिखाई देती है।

वामपंथी इतिहासकारों की चाल

वास्तव में दृष्टिकोण में इस प्रकार का परिवर्तन कर देना ही वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों का एकमात्र उद्देश्य रहा है। कांग्रेस ने इस प्रकार का दुष्प्रचार अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया है। वह मुस्लिम तुष्टिकरण के माध्यम से देश पर शासन करते रहना अपना अधिकार मान चुकी है। कांग्रेस की देखा-देखी वामपंथी भी हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दुस्तान को कोसना अपना परम पवित्र उद्देश्य मान चुके हैं। ऐसा करके वह भी इस मान्यता के हैं कि एक दिन वह इस देश को 'लाल झंडे' के नीचे ले आएँगे।

जबकि वर्तमान मुस्लिम नेतृत्व अब इन दोनों की मूर्खता को समझकर और देश में बढ़ती अपनी जनसंख्या को देखकर अब स्वयं देश की सत्ता को हथियाने की योजना बनाने लगा है। इसके लिए उसका तर्क यही होता है कि हिन्दुस्तान पर हमने 800 वर्ष शासन किया है और हमने इस देश की आजादी के लिए सबसे अधिक बलिदान दिए थे, इसलिए आने वाले समय में हिन्दुस्तान पर हम ही शासन करेंगे।

बलिदानों के बलिदान को इतिहास से ओझल किया, महानायक वे बने जिन्होंने देश से था छल किया।
आज हम विचार कर लें इतिहास की यह साक्षी,
भारत हमारा महान था जिसे पूर्वजों ने बल दिया ।।

कांग्रेसी और वामपंथी इतिहासकारों की देश विरोधी भावना का लाभऐसे मुस्लिम साम्प्रदायिक तत्व यह कहकर उठाते हैं कि देश में लाल किला हो या ताजमहल यह सब हमारे बनवाए हुए हैं। हिन्दुओं का यहाँ पर कुछ नहीं है। अतः देश का यदि अतीत हमारा था तो भविष्य भी हमारा ही होगा। कहने को तो देश में लोकतन्त्र है, परन्तु मुस्लिमों द्वारा इस लोकतन्त्र को भी अपनी बढ़ती जनसंख्या के आधार पर अपना बंधक बनाने की योजना बनाई जा रही है। इन सारी योजनाओं के पीछे सारी साम्प्रदायिक सोच काम कर रही है, अर्थात् भविष्य के भारत पर यदि चिन्तन किया जाए तो मज्जहबी सोच भारत के भविष्य को भी धुंधला करती दिखाई दे रही है।

निश्चय ही इस समय देश को गृह युद्ध से बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। जिसके लिए वास्तविक शान्तिप्रिय हिन्दू और मुस्लिम नेतृत्व को साथ बैठना चाहिए। उन्हें देश में समान नागरिक संहिता व जनसंख्या नियंत्रण की माँग एक स्वर से करनी चाहिए। इन लोगों द्वारा सरकार पर इस बात के लिए दबाव बनाना चाहिए कि देश के सभी लोगों को समान अधिकार प्राप्त हों और सब मिलकर देश उत्थान के कार्य में लगें।

( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य की "मज़हब ही तो सिखाता है आपस में बैर रखना" नामक पुस्तक से ...)
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