महिला को हक देना सीखें
हक देने में जरा भी न चीखें ,महिला को हक देना सीखें ,
चाहे वचन हो मधु सा मृदुल ,
चाहे व्यंग्य क्यों न हो तीखें ।
सीखें तब जब मौका मिले ,
कल बल छल से उर खिले ,
बिन शराब का ऐसा नशा ,
महिला कर दे सबको ढीले ।
शादी पश्चात जिया बेकरार ,
कौन सा मार्ग करूॅं स्वीकार ,
सास ससुर से जान बचाऊॅं ,
शेष कदमों तले ये जहान ।
देवर भॅंसुर से कैसा रिश्ता ,
पति पत्नी संग बेटा पिस्ता ,
तीन के बीच चौथ कहाॅं से ,
बीच में कैसे कोई फरिश्ता ।
पति-पत्नी का रिश्ता सच्चा ,
प्रथम इंतजार शीघ्र बच्चा ,
दूजे इंतजार पति पढ़ा लें ,
तीन वर्ष बाद सबको गच्चा ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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