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श्वेत वस्त्र धारिणी

श्वेत वस्त्र धारिणी

बुद्धिविधाता वरदायिनी आया बसंत मां शारदे।
वीणा पाणी हंसवाहिनी मां अंधकार से तार दे।
कलमकार साधक तेरे शब्दों का भंडार भरो मां।
काव्य कलश में मोती भर रोशन संसार करो मां।

घट दीप आलोक मैया शब्द सुधा बरसा दो मां।
वीणा की झंकार मधुर काव्य पुष्प सजा दो मां।
कविता की कड़ियां में सौरभ छंद गीत महका दो।
बहे प्रेम की अविरल धारा पावन रसधार बहा दो।

शब्द सुमन थाल सजा दीप जलाने आया भारती।
कलमकार शरण तेरी भाव पुष्प ले करूं आरती।
श्वेत वस्त्र धारिणी अनुपम शब्दों का उपहार दो।
कला कौशल गुणों की दाता ज्ञान का भंडार दो।

महफिल महकाने वाली यश वैभव दिलाने वाली।
कीर्ती पताका जग में प्रज्ञादायनी फहराने वाली।
शील संस्कारों से झोली सात सुरों का ज्ञान दो।
कमल विराजे मात शारदे जगजननी वरदान दो।

रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
 रचना स्वरचित और मौलिक
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