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विवाह: जन्मों का बंधन

विवाह: जन्मों का बंधन

पंकज शर्मा

विवाह सिर्फ़ एक बंधन नहीं,
यह आत्मा का है संगम,
दो ह्रदयों का मिलन जहाँ,
प्रेम हो सदा अविरल सरगम।

एक पथ के दो राही हम,
संग-संग चलते जाएँ,
हर कठिनाई, हर मुस्कान को,
मिलकर सहज बनाएँ।

जब प्रथम वचन लिया था हमने,
इक दूजे का संग निभाने का,
आज पुनः प्रण लेते हैं,
प्रतिबद्ध हैं साथ निभाने का।

सुख में, दुःख में, हर मौसम में,
स्नेह सदा बहता रहेगा,
जो वचन दिये थे हमने,
वो यथावत रहता रहेगा।

तेरी हँसी मेरा पारितोषिक होगी,
तेरा आँसू मेरा दर्द,
तेरी हर आशा को पूर्ण करूँ,
तेरा जीवन बने स्वर्ग।

जिन चरणों में प्रेम अर्पित था,
वो प्रेम फिर से अर्पित है,
इस संग-साथ का हर क्षण,
मधुर गीतों से सुशोभित है।

समय भले ही बदल जाए,
मगर न बदलेगी ये डोरी,
जो बंधी है सात फेरों से,
जिसकी कथा अमर है, गौरी।

फिर से इस सांवत्सरिक पर,
हम फिर से एक संग चलते हैं,
हाथों में हाथ थाम,
पुनः वचनों को दोहराते हैं।

हम-तुम साथ, सदा यूँ ही,
हर जनम निभाएँगे,
इस पवित्र बंधन की लौ को,
जीवन भर जलाएँगे।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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