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जब ले छाता में मधु बा,

जब ले छाता में मधु बा,

मधुमक्खी मेंड़र‌इबे करी।
जब ले गाछी पर आम बा,
लोग ढेला चल‌इबे करी।।
सुखल कुंआ में झांक के,
सब लोग खिसक जाला।
लोग भरल कुंआ ढूंढेला,
जवना से प्यास बुझाला।।
जेकरा में गुन बा,
आलोचना भी ओकरे होला।
बुड़बक गंवार लोग के,
केहू भी ना पुछेला।।
नीमन विचार आउर नीमन व्यवहार,
आदमी के सबका से पूजवावेला,
परजरू खोखला लोग के,
समाज अपना से बिलगावेला।। 
 जय प्रकाश कुवंर
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