तुम्हारे संग,अथाह उल्लास उमंग
पाकर तुम्हारा साथ,जीवन सम प्रसून खिला ।
बोझिल सी राहों पर,
आनंद भरा सुकून मिला ।
जले नव आशा दीप ,
नैराश्य हुआ बहिरंग ।
तुम्हारे संग,अथाह उल्लास उमंग ।।
मेरा जीवन तो जैसे,
तपता रेगिस्तान था ।
कदम कदम पर छाया,
संघर्ष भरा तूफान था ।
मुस्कान मिली चेहरे को,
रग रग चैतन्य अनंग ।
तुम्हारे संग,अथाह उल्लास उमंग ।।
मेरे उर कैनवास पर,
तुमने अनूप चित्र बनाया ।
विचलनी पगडंडी पर,
हर भाव पवित्र सजाया ।
जब जब विपदा बदरी घेरी,
सदैव बने समाधान अंग ।
तुम्हारे संग,अथाह उल्लास उमंग ।।
हर्ष उत्साह दिव्य तरंग,
जीवन अनूप परिभाषा हो।
मृदुल प्रणय अनुबंध पर,
नित मिलन अभिलाषा हो।
हिय कामनाएं सदा फलीभूत ,
रमा नेह सौरभ अंग प्रत्यंग ।
तुम्हारे संग,अथाह उल्लास उमंग ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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