दिल्ली की नई मुख्यमंत्री : चुनौतियों का सफर
डॉ राकेश कुमार आर्य
प्रधानमंत्री श्री मोदी अपनी अलग कार्य शैली के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने श्रीमती रेखा गुप्ता को दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने के अपने निर्णय को भी अंतिम क्षणों तक गोपनीय रखा। मीडिया के लोग कई लोगों के नामों को लेकर अनुमान लगाते रहे , परंतु हरबार की भांति इस बार भी प्रधानमंत्री ने अपने निर्णय की गोपनीयता को अंतिम क्षणों तक रहस्यमय बनाए रखा और हमने देखा कि दिल्ली की शालीमार गार्डन सीट से पहली बार विधायक बनकर आईं श्रीमती रेखा गुप्ता को उन्होंने दिल्ली का मुख्यमंत्री बनवा दिया। निश्चित रूप से श्रीमती रेखा गुप्ता के इस चयन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, परंतु स्पष्ट रूप से पार्टी और देश का नेतृत्व प्रधानमंत्री श्री मोदी कर रहे हैं, इसलिए यही कहा जाएगा कि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ एक अच्छा समन्वय स्थापित करते हुए श्रीमती गुप्ता को यह दायित्व दिया। प्रधानमंत्री श्री मोदी राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा सहित कई प्रदेशों में ऐसे चेहरों को आगे ला चुके हैं , उनका वह परीक्षण सफल हीरहा है।
इसके पीछे चाहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हो या प्रधानमंत्री श्री मोदी या उनके अन्य वरिष्ठ परामर्शदाता हों, सभी का उद्देश्य एक ही रहता है कि नया ' बेदाग चेहरा' लोगों को रास आएगा और वह मिले हुए अवसर के दृष्टिगत अच्छे से अच्छा प्रदर्शन करने का प्रयास करेगा। जब ' दागदार चेहरों' को बड़ी जिम्मेदारियां दी जाती हैं तो वे उन्हें पूर्ण निष्ठा के साथ निभा नहीं पाते हैं या फिर अपनी परंपरागत कार्य शैली का परिचय देते हुए भ्रष्टाचार जैसे कार्यों में लग जाते हैं। जिसकी क्षति पार्टी को उठानी पड़ती है और अंत में राष्ट्र को भी ऐसे चेहरों से हानि ही मिलती है। इस प्रकार के नए बेदाग चेहरों को आगे लाने से पार्टी और देश दोनों को दूर तक और देर तक लाभ मिलना स्वाभाविक है। बस अपनी इसी दूरगामी सोच के चलते भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वर्तमान नेतृत्व ऐसे चेहरों को सामने लाता रहता है।
पार्टी ने श्रीमती रेखा गुप्ता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाकर नारी सशक्तिकरण के प्रति अपनी निष्ठा को व्यक्त किया है। वैसे भी इस समय देश में केवल एक ही महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल का नेतृत्व कर रही हैं । जब बार-बार नारी सशक्तिकरण की बात की जा रही हो, तब भाजपा ने एक महिला को मुख्यमंत्री बनाकर इस चर्चा को मानो एक नई ऊंचाई दी है। दूसरी बात यह है कि दिल्ली में जिस प्रकार केजरीवाल ने पिछले 11 वर्ष में ' रेवड़ी बांटने' की परंपरा के आधार पर शासन किया है, उसके चलते बहुत से विकास कार्य प्रभावित हुए हैं । दिल्ली के अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें पानी की पाइपलाइन कई स्थानों पर गल गई है। जिससे लोगों को मलमूत्र मिले पानी को पीने के लिए अभिशप्त होना पड़ गया है। कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें लोगों को दूध मिलना संभव है, परंतु सही पानी मिलना उनके लिए कठिन हो गया है। बिजली के खंभों या लाइन की व्यवस्था भी कई क्षेत्रों में बहुत खराब हो चुकी है। स्वास्थ्य सेवाओं और यातायात को लेकर भी यही कहा जा सकता है। ऐसे में पानी और बिजली की नई लाइन बिछाना और लोगों के स्वास्थ्य व सुविधा के दृष्टिगत उन्हें स्वच्छ पानी और बिजली उपलब्ध कराना दिल्ली की मुख्यमंत्री के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए यदि वह ऐसा करती हैं तो नौटंकी बाज केजरीवाल को लोग भूल जाएंगे। कोई भी घिसापिटा चेहरा इस काम को करने में लापरवाही बरत सकता था। इसलिए भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक नए ऊर्जावान चेहरे को दिल्ली की बागडोर सौंपी है तो इसके पीछे उद्देश्य यह है कि काम ऐसा किया जाए, जिससे लोग केजरीवाल को भूल जाएं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि केजरीवाल अपनी नौटंकियों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने चाहे कितने ही शालीन भाव से दिल्ली के मतदाताओं के जनादेश को स्वीकार किया हो, परंतु इसके पीछे भी उनकी विनम्र नौटंकी ही है। उनसे पूरी उम्मीद की जा सकती है कि वह भारतीय जनता पार्टी की सरकार को चलाने में हर प्रकार का रोड़ा अटकाने का प्रयास करेंगे। लोगों को भ्रमित करेंगे और अपनी नौटंकीवादी राजनीति को सड़कों व चौराहों पर दिखाने का हर संभव प्रयास करेंगे । ऐसे में एक गंभीर नेतृत्व को आगे लाना भारतीय जनता पार्टी के लिए अनिवार्य था। श्रीमती रेखा गुप्ता के भीतर ऐसे ही एक गंभीर व्यक्तित्व को देखा गया है, जो प्रत्येक प्रकार की नौटंकी का सामना करते हुए धैर्य के साथ दिल्ली की जनता की सेवा कर सके।
स्पष्ट है कि भाजपा ने सत्ता का स्वाद लेने के लिए श्रीमती रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री का दायित्व नहीं दिया है , बल्कि पार्टी को निरंतर सत्ता में बनाए रखकर राष्ट्र सेवा करते रहने के लिए उन्हें यह दायित्व दिया गया है। भाजपा की इस प्रकार की रणनीति को केजरीवाल और राहुल गांधी भली प्रकार जानते हैं। भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री के चेहरे को ढूंढने में लगे 10 - 12 दिन के समय को लेकर इन दोनों पार्टियों को इसी बात की चिंता हो रही थी कि भाजपा उन्हें देर तक सत्ता से दूर रखने के लिए मुख्यमंत्री बनाने में जिस प्रकार विलंब कर रही है, वह उनके लिए ही हानिकारक होगा।
इस बार के विधानसभा चुनाव में यमुना की सफाई को भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनाया गया। हमारा मानना है कि यमुना की सफाई को एक मुद्दा बनाया भी जाना चाहिए था। जिस प्रकार दिल्ली के अनेक गंदे नाले इस नदी को मृत नदी के रूप में परिवर्तित करते जा रहे हैं, वह न केवल दिल्ली के लिए बल्कि पूरे देश के लिए चिंता का विषय है। इसके लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता को विशेष परिश्रम करना होगा। हमारा मानना है कि दिल्ली के गंदे नालों के पानी को सीमेंट या लोहे के बड़े-बड़े पाइपों के भीतर डालकर नदी के भीतर इन पाइपों की एक समानांतर लाइन बिछाकर उस पानी को हरियाणा या उत्तर प्रदेश की ओर दूर ले जाया जाए। वहां उसे पीने योग्य या कृषि भूमि को सींचने योग्य बनाकर दोबारा ठीक किया जाए। इसके लिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकारों की एक संयुक्त टीम गठित की जाए अथवा एक प्राधिकरण बनाया जाए। इस प्रकार दिल्ली के गंदे नालों का एक बूंद पानी भी यमुना नदी में नहीं गिर पाएगा, जिससे नदी को स्वच्छ रखने में सहायता मिलेगी।
( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं )
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