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बीता हुआ कल

बीता हुआ कल

बहुमूल्य होता है हर पल ,
आता और जाता है टल ।
कोई पकड़ पाया कोई नहीं ,
टला हुआ है बीता हुआ कल ।
गाड़ी कभी रुकती है नहीं ,
इंतजार में हम खड़े रहते हैं ।
थोड़ी चूक में पार करे गाड़ी ,
गाड़ी छूट गई हम कहते हैं ।।
समय तो सदा ही आता है ,
आता‌ है औ चला जाता है ।
पहचाना वह अपनाया उसे ,
नहीं पहचाना पछताता है ‌।।
एक समय तीन रूप बदले ,
नहीं आया वह आनेवाला है ।
वेश बदल वही आज बनता ,
आज बीता कल में ढाला है ।।
समय होता बहुत ही छलिया ,
अपनी पहचान ही छुपाता है ।
प्रत्यक्ष तक परिचय नहीं देता ,
आगे बढ़ परिचय बताता है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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