डंका इंसानियत का फिर से बजेगा
डंका इंसानियत का फिर बजेगा ,इंसानियत की बजेगी शहनाई ।
हैवानियत की उड़ेंगी धज्जियाॅं ,
इंसानियत लेगा फिर अंगड़ाई ।।
कलियुग तेरा अब खैर नहीं है ,
हमें तुमसे जबकि बैर नहीं है ।
राम कृष्ण को भी बुलाना होगा ,
अब तुमसे भीषण होगी लड़ाई ।।
निज युग बसने दे तू सत्य को ,
न कराओ आपस में तू लड़ाई ।
सत्य निष्ठा हर मन तुम भर दो ,
मिलकर रहें हर मात बहन भाई।।
इंसा की हैवानियत तू हर ले ,
इंसा इंसा में भर दो तुम प्यार ।
तुम भी होंगे जन जन को प्यारे ,
इंसा पर तुम कर लो इतबार ।।
बदल देते हो इंसानों को तुम ,
इंसान ही तुमको अब बदलेगा ।
बदलना होगा अब तुमको स्वत:
मन का तेरा अब ये भ्रम छॅंटेगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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