आत्मनिरीक्षण![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiV42DONC1pNeUbzrBs6m6JVlrZF7wAUvxnn-Frig8xQPJf9GB6IPMg7FE6bbvDy0bGAOMkkUdW2mNCZOSum5p4Hlj_YnvAe6diqVQgMtTf986kjLpWqhLfsDujrmvqEfFFNnefFfYta1UifAnIAtQMZ-olKd4gHPXow4Nmd3M1ECUoZ5cia4HZo5Q6LvVE/s320/WhatsApp%20Image%202025-02-10%20at%202.39.27%20PM.jpeg)
डॉक्टर विवेकानंद मिश्र ![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiV42DONC1pNeUbzrBs6m6JVlrZF7wAUvxnn-Frig8xQPJf9GB6IPMg7FE6bbvDy0bGAOMkkUdW2mNCZOSum5p4Hlj_YnvAe6diqVQgMtTf986kjLpWqhLfsDujrmvqEfFFNnefFfYta1UifAnIAtQMZ-olKd4gHPXow4Nmd3M1ECUoZ5cia4HZo5Q6LvVE/s320/WhatsApp%20Image%202025-02-10%20at%202.39.27%20PM.jpeg)
वर्तमान जीवन शैली
जीवन को छीन रही है।
तहस-नहस करने को ही तो
हमने स्वयं जगह उसे दी है।।
भोगवादी संस्कृति अपनाकर
सचमुच हमने बुरा किया है।
हिंसा, द्वेष, धृणा, कुत्सा से
हमने दिल में दूषण लिया है।।
नैतिक मूल्यों की मर्यादा का
पहिया उतर गया है पथ से।
स्वधर्म स्वाभिमान बेचकर
भटक गये देखो सत्पथ से।।
ममता, करुणा,दया, समर्पण
विश्वास सहज थे सारे।
हम थे नीति- न्याय के रक्षक
सब गुण लुप्त हुए हमारे।।
झूठे वैभव, बुद्धि, सत्ता के
उलझन में जो उलझ रहे हैं।
दिशाहीन अभियान चलाकर
अपने को छल रहे क्यों हैं।।
उठना होगा संकल्पित हो
हमें परिवर्तन अब लाने को।
लेकर 'विवेक' को संग
जो खोया है उसे पाने को ।।
डॉक्टर विवेकानंद पथ गोल गोलबगीच गया
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