बचपन की आदतें
बचपन की तेरी आदतेंदेखो अब तक गई नहीं।
देखना देखी करने की
ये आदत है पुरानी तेरी।
दुनिया की नजरों से
बचना आदत है तेरी।
कही कोई न टोक दे
तेरी इन आदतों पर।।
रोज रोज तुम अपनी
खूबसूरती दिखाती हो।
कसम देकर अपनी तुम
कभी नही आती हो।
अपनी मनगणंत बातें तुम
हमको खूब सुनाती हो।
पर मिलने से अब भी तुम
न जाने क्यों घबराती हो।।
सुबह से लेकर रात तक
पैगाम भेजते हो तुम।
फिर अपनी तस्वीरें भेजकर
मुझको तुम लूभाती हो।
जिन्हें लगाकर सीने से
मैं पूरी रात सोता हूँ।
सुबह उठते ही देखता हूँ
तुम्हारी उन्हीं अदाओं को।।
शायद मुझे आती नहीं
मोहब्बत करने को।
इसलिए शर्माता हूँ
मैं बातें तुमसे करने को।
बहुत कुछ सिखाना है
मुझे अब तुमसे प्रिये।
होती है क्या मोहब्बत
हमारी जिंदगी के लिये।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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