प्रयागराज परिभ्रमण
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सत्येन्द्र कुमार पाठक
सनातन धर्म संस्कृति , पुराणों , वेदों संहिता में प्रयाग का उल्लेख मिलता है। ब्रह्मा जी के ब्रह्मेष्टि एवं जलेष्टि यज्ञ में ब्रह्मा जी की मानस पुत्र प्रयाग द्वारा प्रयाग नगर की स्थापना की गई थी । सातवे वैवस्वतमनु और श्रद्धा की मित्रावरुण के सहयोग से जन्मी पुत्री इला का विवाह वृहस्पति , चंद्रमा और तारा के पुत्र बुध का प्रयाग में हुआ था । माता तारा पुत्र बुध और श्रद्धा पुत्री इला का पुत्र पुरुरवा द्वारा प्रयाग नगर का विकास हुआ था । वैवश्वत मन्वंतर में सरस्वती , गंगा और यमुना नदी का मिलन होने पर महाप्रयाग कहा जाने लगा था । वत्स देश की राजधानी प्रयाग रही थी । त्रेतायुग में भारद्वाज ऋषि प्रयाग में थे । यहां निवासी शिव के उपासक थे ।
प्रयागराज में प्रसिद्ध मंदिर मे त्रिवेणी संगम मंदिर: यह मंदिर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। त्रिवेणी संगम मंदिर सनातन धर्म के लिए बहुत पवित्र माना जाता है। . अल्लाहाबाद किला मंदिर: यह मंदिर अकबर द्वारा बनवाए गए किले में स्थित है। किला में अनेक प्राचीन मंदिर और स्मारक हैं। संगम तट पर वैवश्वत मन्वंतर में वैवश्वत मनु की पुत्री इला को समर्पित इला बाग था । यह स्थल मित्र , वरुण , बुध , भगवान सूर्य , चंद्रमा , वृहस्पति , कुंभ , श्रद्धा , देव , दानव , दैत्य , नाग , गंधर्व , शनि , यम , अश्विनी कुमार , भगवान ब्रह्मा , विष्णु , शिव , महालक्ष्मी , महाकाली , महासरस्वती का प्रिय स्थल था । सतयुग , त्रेतायुग और द्वापरयुग में प्रिय स्थल एवं मौर्य , शुंग , गुप्त काल में प्रसिद्धि है। भारद्वाज आश्रम मंदिर महर्षि भारद्वाज के आश्रम के रूप में प्रसिद्ध है। यह मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित है।नारायण आश्रम मंदिर: यह मंदिर भगवान नारायण को समर्पित है। यह मंदिर प्रयागराज के एक प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। लेटे हनुमान मंदिर*: यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है। यह मंदिर अपनी अनोखी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, हिंदू धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह शहर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम के लिए प्रसिद्ध है, जो हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है।
प्रयागराज में 1. त्रिवेणी संगम मंदिर: यह मंदिर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। अल्लाहाबाद किला मंदिर_: यह मंदिर अकबर द्वारा बनवाए गए किले में स्थित है।भारद्वाज आश्रम मंदिर: यह मंदिर महर्षि भारद्वाज के आश्रम के रूप में प्रसिद्ध है। नारायण आश्रम मंदिर: यह मंदिर भगवान नारायण को समर्पित है।लेटे हनुमान मंदिर_: यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है।1. त्रिवेणी संगम: यह स्थल गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम के लिए प्रसिद्ध है। 2. अनंद भवन: यह स्थल महात्मा गांधी के आवास के रूप में प्रसिद्ध है।3. किला: यह स्थल अकबर द्वारा बनवाए गए किले के रूप में प्रसिद्ध है। 4. प्रयागराज कुंभ मेला: यह स्थल
कुंभ मेले के लिए प्रसिद्ध है, जो हर 12 वर्ष में आयोजित किया जाता है।5. संगम घाट: यह स्थल त्रिवेणी संगम के घाट के रूप में प्रसिद्ध है, जहां लोग स्नान और पूजा करते हैं। इन मंदिरों और स्थलों के अलावा, प्रयागराज में कई अन्य प्रसिद्ध मंदिर और तीर्थ स्थल भी हैं । प्रयाग व प्रयागराज का नामकरण बादशाह अकबर द्वारा 1583 ई. में इलाहाबाद रखा गया था । प्रयाग को प्रसाद स्थल और अकबर ने प्रयाग को अल्लाह व ईश्वर का बाग बगीचा कहा गया है। ऋग्वेद काल से ही प्रयाग हमेशा से सभी के लिए एक महान तीर्थस्थल रहा है। इस भावना के पीछे मुख्य रूप से पवित्र नदियों यमुना, गंगा और सरस्वती का संगम है। अक्सर यह माना जाता है कि जो व्यक्ति इस संगम पर अपनी अंतिम सांस लेता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसे दोबारा जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती है। वह सांसारिक मामलों से मुक्त हो जाता है। यह न केवल मानवीय विश्वास है बल्कि महाभारत, पदम पुराण, अग्निपुराण और सूर्य पुराण जैसे पुराने समय के सभी पवित्र ग्रंथ प्रयाग को एक पवित्र स्थल मानते हैं। यह भी लिखा है कि 450 ईसा पूर्व गौतम बुद्ध ने इस स्थान का भ्रमण किया था। ।ऐसे धार्मिक संदर्भों और दृढ़ मानवीय आस्था के कारण प्रयाग आज एक धार्मिक स्थल बन गया है, जहाँ अनेक लोकप्रिय मंदिर और भगवान के पवित्र तीर्थस्थल हैं। ये यात्रियों के लिए पूजा स्थल होने के साथ-साथ एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी हैं। प्रयाग व प्रयागराज का नामकरण बादशाह अकबर द्वारा 1583 ई. में इलाहाबाद रखा गया था । प्रयाग को प्रसाद स्थल और अकबर ने प्रयाग को अल्लाह व ईश्वर का बाग बगीचा कहा गया है। जिसका अर्थ है । बादशाह अकबर द्वारा यमुना नदी के किनारे अल्लहा बाद किले का निर्माण जिसे किला कहा जाता है । ऋग्वेद काल में प्रयाग महान तीर्थस्थल रहा है। पवित्र नदियों यमुना, गंगा और सरस्वती का संगम है। महाभारत, पद्म पुराण, अग्निपुराण और सूर्य पुराण , बौद्ध एवं जैन धर्म ग्रन्थों , सनातन धर्म संस्कृति में प्रयाग का उल्लेख मिलता है। गौतम बुद्ध ने 450 ई. पू. प्रयाग का भ्रमण किया था। । भारद्वाज आश्रम - प्रयागराज का। कर्नलगंज क्षेत्र में स्थित भारद्वाज आश्रम में भगवान राम, लक्ष्मण, शेषनाग, सूर्य , भारद्वाजेश्वर महादेव का शिवलिंग भी स्थापित किया गया था। त्रेतायुग में ऋषि भरद्वाज द्वारा स्थापित भारद्वाजेश्वर शिवलिंग स्थापित है। अक्षय वट , विंद मार्ग के समीप यमुना के तट पर आगरा किले के अंदर स्थित बट वृक्ष व अक्षयवट है। किले के समीप 15 फीट की दूरी पर बनी हुई अक्षयवट की शाखाएँ यमुना नदी तक पहुँचती हैं। वर्ष 1992 में, अक्षयवट के आधार को संगमरमर पाषाण से घेरा गया और वर्ष 1999 में भगवान राम लक्ष्मण और सीता मंदिर निर्माण किया गया है। प्रयाग ,संगमपुरी ,संगमनगरी ,कुंभनगरी ,तम्बुनगरी ,प्रयागराज और 1575 ई.में इलाहाबाद और उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा प्रयागराज कहा गया है । मनकामेश्वर मंदिर - इलाहाबाद किले के पश्चिमी भाग में, मिंटो पार्क के समीप मनकामेश्वर घाट , मनकामेश्वर मंदिर भगवान शिव, भगवान गणेश और नंदी मंदिर है। मनकामेश्वर मंदिर परिसर में पीपल वृक्ष एवं बड़ी हनुमान प्रतिमा अवस्थित है । फकामऊ के उत्तर पूर्व में पाषाण युक्त पडिला महादेव मंदिर के गर्भगृह में पडिला शिवलिंग है। फाफामऊ के उत्तर पूर्व में स्थित यह एक साधारण मंदिर है जो फाल्गुन महीने में शिवरात्रि के समय बहुत लोकप्रिय हो जाता है। मीरपुर क्षेत्र में 108 फिट की उचाई पर ललिता देवी मंदिर स्थित है। मंदिर के परिसर में पीपल वृक्ष के साथ मूर्तियाँ सजी हुई हैं । कंदला मड़ैया से दक्षिण में हंडिया से 6 किमी की दूरी पर गंगा किनारे लाक्षागृह अवस्थित द्वापरयुग महाभारत के दुर्योधन द्वारा पांडवों को फंसाने के लिए बनाया गया था,। जसौभाग्य से गुप्त दरवाजे से पांडव पुत्र निकले थे। दारागंज के पश्चिमी छोर पर स्थित अलोपीबाग में आलोपी मंदिर के गर्भगृह में आलोपी देवी गोल चबूतरा पर कपड़ा लगा हुआ है और उसके नीचे छोटी सी खाट है। भगवान शिव मंदिर में शिवलिंग स्थापित है। ऐसा माना जाता है कि यह शक्तिपीठों में से एक है जो बहुत सारे आशीर्वाद से जुड़ा हुआ है। नवरात्रि के दौरान यहाँ एक बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है। दरियाबाद के दक्षिण में यमुना तट पर तक्षकेश्वर मंदिर है। दरियाबाद क्षेत्र में नाग तक्षक का आश्रय स्थल था ।द्वापरयुग में भगवान कृष्ण ने मथुरा से तक्षक नाग भगाया था। तक्षकेश्वर मंदिर के समीप तक्षक कुंड पर विभिन्न देवी-देवताओं की कई मूर्तियाँ हैं।अरैल क्षेत्र में आधार या भूतल से नीचे निर्मित सोमेश्वर मंदिर यमुना नदी के किनारे स्थित है। सोमेश्वर मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की 44 मूर्तियाँ में कुछ मूर्तियाँ 17वीं या 18वीं शताब्दी की हैं। 1735 में बाजीराव पेशवा द्वारा 1735 ई. को सोमेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था। कल्याणी देवी क्षेत्र का कल्याणी देवी मंदिर यमुना नदी के तट पर है। कल्याणी देवी मंदिर परिसर में भगवान शंकर के साथ कई देवी-देवताओं की प्रतिमाएं हैं।रामबाग के समीप शिवकोटि स्थित शिवकुटी मंदिर और आश्रम इलाहाबाद के उत्तरी छोर पर गंगा नदी के तट पर स्थित है । शिवकोटि मंदिर का निर्माण वर्ष 1948 में हुआ था। लक्ष्मी नारायण मंदिर के साथ-साथ संगमरमर से बनी मूर्तियों वाला दुर्गा मंदिर है। जीरो रोड पर भगवान हाटकेश्वर शिव का मंदिर स्थित है। दारागंज इलाके का बाई का बाग में स्थित यह भगवान कृष्ण और देवी राधा को समर्पित वेणी माधव मंदिर है।
1. त्रिवेणी संगम मंदिर: गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित।
2. अल्लाहाबाद किला मंदिर: अकबर द्वारा बनवाए गए किले में स्थित।
3. भारद्वाज आश्रम मंदिर: महर्षि भारद्वाज के आश्रम के रूप में प्रसिद्ध।
4. अक्षय वट: यमुना के तट पर स्थित एक पवित्र वट वृक्ष।
5. मनकामेश्वर मंदिर: इलाहाबाद किले के पश्चिमी भाग में स्थित।
6. पडिला महादेव मंदिर: फाफामऊ के उत्तर पूर्व में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर।
7. ललिता देवी मंदिर: मीरपुर क्षेत्र में 108 फीट की ऊंचाई पर स्थित।
8. लाक्षागृह: द्वापरयुग में पांडवों को फंसाने के लिए बनाया गया एक स्थल।
9. आलोपी मंदिर: अलोपीबाग में स्थित एक शक्तिपीठ।
10. तक्षकेश्वर मंदिर: दरियाबाद के दक्षिण में यमुना तट पर स्थित।
11. सोमेश्वर मंदिर: अरैल क्षेत्र में आधार या भूतल से नीचे निर्मित एक शिव मंदिर।
12. कल्याणी देवी मंदिर: कल्याणी देवी क्षेत्र में यमुना नदी के तट पर स्थित।
13. शिवकुटी मंदिर और आश्रम: इलाहाबाद के उत्तरी छोर पर गंगा नदी के तट पर स्थित।
14. लक्ष्मी नारायण मंदिर: शिवकुटी मंदिर के साथ-साथ संगमरमर से बनी मूर्तियों वाला एक मंदिर।
15. हाटकेश्वर शिव मंदिर: जीरो रोड पर स्थित एक शिव मंदिर।
16. वेणी माधव मंदिर: दारागंज इलाके का बाई का बाग में स्थित एक कृष्ण मंदिर है।
इला की कथा के अनुसार, राजकुमारी इला ने पिता की मृत्यु के बाद राजा बनीं। इला ने अपने राज्य में शांति और समृद्धि स्थापित की, लेकिन बाद में उन्हें एक शाप के कारण एक पुरुष में बदल दिया गया। इस शाप के कारण, इला ने अपना राज्य और परिवार खो दिया। इला बुध की पत्नी थीं।बुध, जो कि चंद्रमा के पुत्र थे, ने इला से विवाह किया था। इला और बुध का एक पुत्र था, जिसका नाम पुरूरवामहाभारत और पुराणों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने प्रयाग नगरी की स्थापना की थी और इसे एक पवित्र तीर्थ स्थल बनाया था। भगवान ब्रह्मा ने इस स्थल पर एक यज्ञ किया था, जिसे प्रयाग यज्ञ कहा जाता है। महाभारत और पुराणों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने प्रयाग को अपने पुत्र के रूप में उत्पन्न किया था। भगवान ब्रह्मा ने प्रयाग को अपने पुत्र के रूप में उत्पन्न किया था।प्रयाग के पिता भगवान ब्रह्मा के रूप में माने जाने के कारण, प्रयाग नगरी को एक पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है और यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। प्रयाग की पत्नी का नाम मारिषा था। महाभारत और पुराणों के अनुसार, मारिषा एक पवित्र और धर्मपरायण महिला थीं। वह प्रयाग की पत्नी बनीं और उन्होंने एक साथ कई पुत्रों को जन्म दिया था । , प्रयाग की पत्नी का नाम मारिषा थी और उनके पुत्र का नाम पुरूरवा था। महाभारत और पुराणों के अनुसार पुरूरवा अपने पिता प्रयाग की तरह ही एक धर्मपरायण और न्यायप्रिय राजा थे। प्रयाग के राजा पुरूरवा थे। महाभारत और पुराणों के अनुसार, पुरूरवा प्रयाग के राजा थे और उन्होंने अपने पिता प्रयाग की तरह ही एक धर्मपरायण और न्यायप्रिय राजा के रूप में शासन किया था।पुरूरवा के वंशजों ने प्रयाग को महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल और सांस्कृतिक केंद्र बनाया। प्रयाग के राजाओं में 1. प्रयाग 2. पुरूरवा 3. आयु।4. नहुष 5. ययाति की राजधानी प्रयाग थी:1. प्रयाग वंश: प्रयाग वंश के राजाओं ने प्रयाग पर शासन किया और इस शहर को अपनी राजधानी बनाया। 2. पुरूरवा वंश: पुरूरवा वंश के राजाओं ने भी प्रयाग पर शासन किया और इस शहर को अपनी राजधानी बनाया।।3. चंद्रवंश: चंद्रवंश के राजाओं ने प्रयाग पर शासन किया और इस शहर को अपनी राजधानी बनाया। ।4. सूर्यवंश: सूर्यवंश के राजाओं ने भी प्रयाग पर शासन किया और इस शहर को अपनी राजधानी बनाया। प्रयाग कई अन्य राजाओं और वंशों की राजधानी भी रही है, जिनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं:- कौशल वंश - वत्स वंश।- मौर्य वंश।।- गुप्त वंश वत्स देश की राजधानी प्रयाग में स्थित थी। वत्स देश के राजा उदयन ने प्रयाग में अपनी राजधानी स्थापित की थी और इस शहर को एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और व्यापारिक केंद्र बनाया था। प्रयाग की राजधानी होने के नाते, वत्स देश के राजा यहाँ से अपने साम्राज्य का शासन करते थे। यह शहर एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र भी था, जहाँ कई प्रमुख तीर्थ स्थल और मंदिर स्थित थे। भगवान शिव के प्रिय स्थल प्रयाग में नागा , नागों , ऋषियों की सांस्कृतिक विरासत थी । प्रयाग को इला बाग , प्रयाग , कुंभ नगर , प्रयागराज , त्रिवेणी , संगम , नागाओं का नगर , ऋषिनगर , इलाहाबाद आदि नामों से ख्याति प्राप्त है।
साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा 10 फरवरी 2025 को प्रयागराज का महाकुंभ के अवसर पर संगम में स्नान कर भगवान सूर्य एवं माता गंगा , यमुना सरस्वती की उपासना करने के पश्चात प्रयागराज स्थित पवित्र स्थलों का दर्शन किया गया । प्रयागराज स्थित 16 सेक्टर में बने टेंट हरिहर मार्ग में बने जीवनधारा नमामि गंगे शिविर , के अलावा अनेक शिविर एवं प्रसिद्ध स्थल का भ्रमण किया । कुंभमेले की सुरक्षा थी । यातायात साधन में मोटरसाइकिल दो पहिया वाहन चालकों द्वारा यात्रियों से मनमाने किराए वसूले जाते । प्रयागराज जंक्शन से कुंभमेले तक जाने का यातायात साधन नहीं था वल्कि दो पहिया साधन नाग वासुकी तक था । पैदल यात्रा थी ।पैदल यात्रा आनंददायी है । संगम पर माता गंगा यमुना सरस्वती का संगम का दर्शन किया और भूमि का नमन करने पर आनंद की अनुभूति हुई है । जीवनधारा नमामि गंगे के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ . हिरिओम शर्मा द्वारा स्थापित जीवनधारा नमामि गंगे शिविर है। साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक के साथ पी एन बी के सेवानिवृत्त अधिकारी सत्येन्द्र कुमार मिश्र थे । बिहार से प्रकाशित हिंदी पाक्षिक निर्माण भारती के संपादक जी एन भट्ट ने कुंभ मेले की चर्चा की है। प्रयागराज की महाकुंभ की विशेष तैयारी के लिए महाकुंभ यात्रियों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को सराहना करते नजर आ रहे थे । महाकुंभ में जलोत्सव , नागाओं , संतों , साधुओं सनातन संस्कृति का संगम है । आचार्य कुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आचार्य धर्मेंद्र द्वारा महाकुंभ की चर्चा की है ।
नागवासुकी - नागवासुकी मंदिर गंगा यमुना सरस्वती नदियों का संगम प्रयागराज का महल्ला दारागंज के उत्तर 10 वी। सदी में स्थापित नाग बासुकी मंदिर के गर्भगृह में नाग नागिन की मूर्ति है। बासुकी मंदिर पुनर्निर्माण नागपुर के राजा श्रीधर भोशले के द्वारा वेशर शैली में निर्माण किया गया है ।पद्मपुराण एवं महाभारत एवं सनातन धर्म संस्कृति ग्रंथों के अनुसार प्रयागराज को भोग तीर्थ कहा गया है। समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग के मथनी के रूप में इस्तेमाल करने से उनके शरीर में सुमेरु परबत से रगड़ के कारण जलन पैदा हुई थी । मंदराचल पर्वत पर निवास के जलन ठीक नही होने पर भगवान विष्णु के सलाह पर वासुकी प्रयाग आकर सरस्वती नदी के जल पान एवं बिश्राम करने पर जलन से मुक्ति प्राप्त हुई थी । स्मृति ग्रन्थों के अनुसार आकाश से माता गंगा जमीन पर गंगा नदी की तेज बहाव से गंगा के पानी पाताल जाने जाने के क्रम में नागवासुकी के फन पर गंगा जल गिरने के कारण भोग तीर्थ को प्रयाग कहा गया है। नागवासुकी मंदिर के पच्छिम स्थल भोगतीर्थ कहा जाता है। नाग वासुकी मंदिर जीर्णोद्धार नागपुर के राजा श्रीधर भोंसले द्वारा करवाया गया था । मुगल वंश का बादशाह औरंगजेब द्वारा नागवासुकि मंदिर में मूर्ती पर तलवार चलाने के क्रम में नागवासुकी के भब्य रूप में मूर्ती के देख कर औरंगज़ेब बेहोस हो गया था । मुरलीमनोहर जोशी द्वारा 2001 ई. में नागवासुकि मंदिर को मरम्मत करवाया गया था ।
लेते हुए हनुमान मंदिर - प्रयागराज का संगम के किनारे हनुमान मंदिर के गर्भगृह में शयन करते हुए हनुमान जी स्थापित है। हनुमानजी की प्रतिमा दक्षिणाभिमुखी और 20 फीट लंबी धरातल से कम से कम 6 7 फीट नीचे है। संगम तट पर अवस्थित हनुमान मंदिर के गर्भगृह में स्थित दक्षिणमुखी हनुमान जी को बड़े हनुमानजी, किले वाले हनुमानजी, लेटे हनुमानजी और बांध वाले हनुमानजी के नाम से ख्याति है। हनुमानजी प्रतिमा के बारे के बाएं पैर के नीचे कामदा देवी और दाएं पैर के नीचे अहिरावण दबा है। हनुमानजी के दाएं हाथ में राम-लक्ष्मण और बाएं हाथ में गदा शोभित है। स्मृति ग्रंथो के अनुसार त्रेतायुग में लंका पर जीत हासिल करने के बाद हनुमानजी लौटने के पश्चात रास्ते में थकान महसूस होने लगी। सीता माता के कहने पर वह संगम के तट पर शयन व विश्राम करने लगे थे ।हनुमान मंदिर 600-700 वर्ष पुराना माना जाता है। कन्नौज के राजा के कोई संतान नहीं थी। उनके गुरु ने उपाय के रूप में बताया, ‘हनुमानजी की ऐसी प्रतिका निर्माण करवाइए जो राम लक्ष्मण को नाग पाश से छुड़ाने के लिए पाताल में गए थे। हनुमानजी का यह विग्रह विंध्याचल पर्वत से बनवाकर लाया जाना चाहिए।’ जब कन्नौज के राजा ने ऐसा ही किया और वह विंध्याचल से हनुमानजी की प्रतिमा नाव से लेकर आए। तभी अचानक से नाव टूट गई और यह प्रतिका जलमग्न हो गई। राजा को यह देखकर बेहद दुख हुआ और वह अपने राज्य वापस लौट गए। इस घटना के कई वर्षों बाद जब गंगा का जलस्तर घटा तो वहां धूनी जमाने का प्रयास कर रहे राम भक्त बाबा बालगिरी महाराज को यह प्रतिमा मिली। फिर उसके बाद वहां के राजा द्वारा मंदिर का निर्माण करवाया गया। प्राचीन काल में मुगल शासकों के आदेश पर हिंदू मंदिरों को तोड़ने का क्रम जारी था, लेकिन यहां पर मुगल सैनिक हनुमानजी की प्रतिमा को हिला भी न सके। वे जैसे-जैसे प्रतिमा को उठाने का प्रयास करते वह प्रतिमा वैसे-वैसे और अधिक धरती में बैठी जा रही थी। यही वजह है कि यह प्रतिमा धरातल से इतनी नीचे बनी है।
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