आएंगे परशुराम हमारे
कहते गर अपना समाज है
फिर अपनों से कहां लाज है।
जो कहना है, खुलकर कह दो
बदला समाज देखो आज है।।
यहाँ बैठ छः- पांच न करना
सब बन्धु हैं, धीरज धरना।
अपनी ब्यथा खुलकर कहना
मन की कसक मिटाकर रहना।।
स्वहित छोड़ परहित की बातें
यहां बताने में न झिझकना।
तेरी यश-कीतिॅ है इसमें
गर होगी आलोचना भी सहना।।
जिसने तुमको किया अनादर
अत्याचार किया ब्राह्मण पर।
कह दो, परशुराम अमर है
फरसा भी हमारे ही कर है।।
कहां छुपा है आज तुम्हारा
स्रोत निखिल ब्राह्मण समाज का।
आगे बढ़ सबको समझाओ
परशुराम हम ही आज का।।
कहाँ चूक है, नजर दौड़ाओ
जरा उसे भी अब आजमाओ ।
जनहित में कह अर्पित जीवन
अब विवेक को मत भरमाओ।।
डॉक्टर विवेकानंद मिश्र
डॉक्टर विवेकानंद पथ गोलबगीच, गया
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