कभी गरम कभी नरम
जय प्रकाश कुंवर
मुरली बाबू एक सेवानिवृत्त व्यक्ति हैं। वे सेवानिवृत्ति के बाद स्थायी रूप से बिहार की राजधानी पटना में अपने निजी घर में रहते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद शारीरिक अस्वस्थता के कारण वे ज्यादा समय घर में ही बिताते हैं। उनकी पत्नी जो लगभग उन्हीं की उम्र की हैं, घर का सारा दायित्व संभालती हैं। घर में कोई विशेष अच्छी आमदनी अब नहीं होने के कारण घर में कोई दाई नौकर भी नहीं है। अतः बाजार करना, साफ सफाई करना और खाना पकाना सब उनकी पत्नी के ही जिम्मे है। कुछ महीने पहले एक बार वो सब्जी बाजार से लौटकर आईं और सोफे पर धड़ाम से बैठ गयीं। मुरली बाबू ने उनसे पुछा कि क्या हुआ, तबीयत वगैरह तो ठीक है न। इस पर वो बोलीं कि हां तबीयत तो शारीरिक रूप से ठीक है , परंतु आर्थिक और मानसिक रूप से खराब हो गया है। आज आपने बाजार करने के लिए जो भी पैसे दिये थे वो केवल टमाटर खरीदने में ही खत्म हो गये। आज बाजार में टमाटर २५० रूपये किलो बिक रहा था। मोल-तोल की कोई गूंजाइश नहीं थी। सब्जी बेंचने वाले टमाटर की टोकरी में चुनने के लिए हाथ भी नहीं लगाने दे रहे थे। उनका कहना था कि जो भी है, जैसा भी है, लेना हो तो लीजिए वरना जाइए। मैं चूंकि आपके स्वभाव से वाकिफ थी कि खाने पर आपको टमाटर के सलाद के बिना नहीं चल सकता है, अतः आज आपके दिए पूरे १२५ रूपये का आधा किलो टमाटर ही खरीद कर चली आई हूँ। बाजार में तो सब्जी वाले ने अपने अनुसार तौलकर आधा किलो दे दिया है, परंतु अब देखने दीजिये कि कैसा है। मैडम द्वारा घर में जांच करने पर 2-3 टमाटर गले हुए ही निकले। मुरली बाबू ने मैडम को आस्वस्त किया कि चिंता करने की कोई बात नहीं है, क्योंकि दूनियां ऐसे ही चलती है, कभी गरम तो कभी नरम।
समय बितता गया और एक दिन उनकी पत्नी अस्वस्थ होकर बेड पर लेटी हुई थी।पत्नी की अस्वस्थता के कारण आज बाजार करने वाला घर में मुरली बाबू को छोड़कर कोई और नहीं था। बिगत एक लम्बे अरसे से मुरली बाबू कभी सब्जी बाजार नहीं गए थे। लेकिन आज तो मजबूरी थी , सो आज वो झोला उठा कर सब्जी बाजार के लिए रवाना हुए। बाजार में अपनी मन पसंद कुछ सब्जियां खरीदे। अब अपनी सबसे मन पसंद सब्जी टमाटर खरीदने आगे बढ़े। एक जगह उन्होंने टमाटर का भाव पूछा। सब्जी वाले ने उन्हें १० रूपये किलो टमाटर का भाव बताया। वो टमाटर का दर इतना कम सुनकर हक्का बक्का होकर सब्जी वाले का मुंह देखने लगे। उन्होंने फिर ठीक से भाव बताने को कहा। पर फिर उसने वही १० रूपये किलो बताया। उसने शर्त ये भी बताया कि वो जैसा चाहें चुनकर ले सकते हैं। मुरली बाबू ने दो चार और दुकानों से दर पुछा और हर जगह वही दर पाकर आखिर में वे एक किलो १० रूपये का टमाटर लेकर घर आ गए।
घर आकर मुरली बाबू ने अपनी पत्नी को बताया कि देखो न आज सब्जी बाजार में टमाटर मात्र १० रूपये किलो मिल गया। यह सुनकर उनकी पत्नी बहुत खुश हुईं और कहा कि अब आपको यह समझ जाना चाहिए कि दूनियां ऐसे ही चलती है,कभी नरम तो कभी गरम । केवल समय समय की बात होती है।
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