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चित्र देखो मित्र की

चित्र देखो मित्र की ,

चित्त में झाॅंककर ।
चित्र चरित्र देख लो ,
सचरित्र ऑंककर ।।
सच्चे मित्र जोड़ लो ,
शेष से मुॅ़ह मोड़ लो ।
निज चरित्र देखकर ,
नकली रिश्ते तोड़ लो ।।
मित्र होता ही ज्ञान है ,
मित्र होता भगवान है ।
डूबते को मित्र बचा ले ,
यह मित्र ही महान है ।।
छल मत करो मित्र से ,
मित्र तो होते हैं इत्र से ।
मत करो रिश्ते को गंदे ,
मित्र इत्र होते पवित्र से ।।
संकट आए न घबराना ,
रूठ नहीं पाए याराना ।
मित्र पित्र चरित्र व चित्र ,
इत्र सा निर्मल दोस्ताना ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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