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नेह अनुपमा सदा विचित्र

नेह अनुपमा सदा विचित्र

प्रसून नित्य मस्त मलंग,
निहार उपवन हरियाली ।
कृष्ण मिलिंद सम्मोहित,
दर्श कर कुसुम लाली ।
दीप पतंगा मिलन अद्भुत,
भय रहित प्रणय पवित्र ।
नेह अनुपमा सदा विचित्र।।


कुमुदिनी सुधाकर चाह अनूप,
धरा गगन दूरी विलोप ।
जीवन शीर्ष ध्येय दर्शन ,
उत्संग दिव्य प्रीति ज्योत ।
लैला मजनू कहानी अंतर,
प्रेम प्रतिष्ठा आराध्य चित्र ।
नेह अनुपमा सदा विचित्र ।।


मात पिता प्रीत अनुपम,
विष पीकर आशीष वृष्टि ।
सहन वहन कपूत अपमान,
पर अंतःकरण शुभता दृष्टि ।
गुरु शिष्य स्नेह अप्रतिम,
तिमिर पट प्रकाश मित्र ।
नेह अनुपमा सदा विचित्र ।।


सखा संबंध पुनीत पावन,
दुःख संकट सुरक्षा कवच ।
परम सेतु अंतरंगी आनंद,
प्रेरणा बचाव व्यर्थ प्रपंच ।
हंसी खुशी अनुराग उद्गम,
मंगल प्रयास अपनत्व जनित्र ।।
नेह अनुपमा सदा विचित्र ।।


कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)


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