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सात समन्दर सात लोक, मन के भीतर हैं,

सात समन्दर सात लोक, मन के भीतर हैं,

इन्द्रधनुष के सात रंग भी, मन के भीतर हैं।
जब भी चाहा मन पंखों से, अंतरिक्ष तक जाना,
बन्द नयन में ध्यान से देखा, मन के भीतर हैं।
सुख दुःख नफ़रत प्यार झरोखा, मन के भीतर हैं,
अहसासों की अनुभूति यह, मन के भीतर हैं।
राग द्वेष से बचकर रहना, ज्ञानीजन यह कहते,
काम क्रोध मोह लोभ मद, मन के भीतर हैं।
ढूँढ रहे ईश्वर को मन्दिर मे, मन में स्वार्थ भरा,
तीर्थ राज नदियों का संगम, मन के भीतर है।
मात पिता जीवित भगवान, ममता नदियों का संगम,
मानवता का सागर गहरा, मन के भीतर है।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन

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