बिखरते रिश्तों की दास्तान
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक महानगर में बसे अनिमेष और विभावरी ने प्रेम विवाह किया था। इस रिश्ते को अनिमेष के परिवार का विरोध झेलना पड़ा, लेकिन उसने अपनी पत्नी के लिए सब कुछ छोड़ दिया। वे एक साधारण जीवन बिता रहे थे, और उनकी खुशियां तब और बढ़ गईं जब उनकी बेटी का जन्म हुआ। धीरे-धीरे अनिमेष के परिवार से भी संबंध सामान्य होने लगे।
लेकिन समय के साथ आर्थिक दबाव बढ़ा, और दोनों ने निर्णय लिया कि अनिमेष कुछ वर्षों के लिए विदेश चला जाए। जब वह विदेश में था, तभी विभावरी की मुलाकात उसके पुराने सहपाठी छद्म से हुई। अकेलापन, असुरक्षा और नई भावनाओं के प्रवाह में वह उसके करीब आती चली गई। यह नजदीकी जल्द ही नैतिक बंधनों को तोड़ने लगी। छद्म ने विभावरी को नशे की लत भी लगा दी, जिससे वह पूरी तरह उसके नियंत्रण में आ गई।
जब अनिमेष वापस लौटा, तो उसे अपनी पत्नी के व्यवहार में बदलाव महसूस हुआ। संदेह के चलते परिवार ने जांच-पड़ताल की और सच सामने आया—विभावरी नशे और अनैतिक संबंधों में बुरी तरह फंस चुकी थी। लेकिन जब उससे पूछताछ की गई, तो उसने सब ठीक होने का झूठा आश्वासन दे दिया।
फिर एक दिन, अनिमेष अपनी बेटी को कुछ दिनों के लिए सास-ससुर के घर छोड़ आया। अगले दिन विभावरी ने अपनी मां को फोन कर बताया कि वह अपने पति के साथ घूमने जा रही है। जब दो दिन तक अनिमेष का कोई फोन नहीं आया और विभावरी बार-बार बात टालती रही, तो माता-पिता को चिंता हुई।
कुछ दिनों बाद, विभावरी अचानक घर लौटी और अपनी बेटी व मां से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी। जब उससे पूछा गया, तो उसने जो बताया, वह दिल दहला देने वाला था—उसने और छद्म ने मिलकर अनिमेष की हत्या कर दी थी। कारण? अब वे न तो खुलकर नशा कर सकते थे और न ही अपने अनैतिक संबंध को बेखौफ जी सकते थे।
यह सुनते ही विभावरी के माता-पिता स्तब्ध रह गए। उन्होंने तुरंत उसे थाने ले जाकर पुलिस के हवाले कर दिया। अब वे मीलित नयनों के कोरों से बहती अश्रु धारा लिए अपने दिवंगत दामाद के लिए न्याय और अपनी ही बेटी के लिए फांसी की मांग कर रहे हैं। उनके मन में बस एक ही सवाल था🤔—क्या उनकी परवरिश में कोई कमी रह गई थी, या यह समाज का नैतिक पतन था जिसने उनकी बेटी को इतना क्रूर बना दिया?
समाज के लिए एक सवाल ...?
क्या रिश्तों की डोर इतनी कमजोर हो चुकी है कि शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं? क्या पारिवारिक और सामाजिक ढांचा अब इतना चरमरा गया है कि नैतिकता और संस्कार विलुप्त होते जा रहे हैं?
"बिखरते रिश्तों की दास्तान"—यह कहानी केवल विभावरी की नहीं, बल्कि उन सभी रिश्तों की है जो स्वार्थ, लालच और अनैतिकता की भेंट चढ़ रहे हैं।🤔🤔
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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