स्त्री देह से आगे,नेह का सागर
माधुर्य वात्सल्य प्रतिमूर्ति,पोषण निर्माण अद्भुत शक्ति ।
सूक्ष्म जीवन निर्वाह कला,
जन्म रूपांतर अनूप युक्ति ।
अहम सेतु मानवता उत्थान,
पूर्व जन्म अवबोध गागर ।
स्त्री देह से आगे,नेह का सागर ।।
जीव परिष्कार परम उपमा,
त्वरित अनुभूत मन भाषा ।
सहन वहन कष्ट कंटक बाधा,
पर खुशियां निज अभिलाषा ।
जीवन हर पल स्वप्निल भोर,
धर्म आस्था अनुष्ठान अभिजागर ।
स्त्री देह से आगे, नेह का सागर ।।
संवाहक संस्कृति संस्कार,
परंपरा मर्यादा अभिरक्षक ।
परिवार समाज सौम्य कड़ी,
अधर्म अनैतिकता भक्षक ।
शील समर्पण उत्सर्ग अनुपमा,
सदा सशक्तिकरण भाव उजागर ।
स्त्री देह से आगे,नेह का सागर ।।
विमल मृदुल अंतःकरण,
नैसर्गिक छटा अंग प्रत्यंग ।
मिलनसारी मधुर व्यवहार,
मुख शोभा मुस्कान उमंग ।
विनम्रता सामंजस्यता अनन्य,
द्वि कुल रक्षा स्वाभिमान आदर ।
स्त्री देह से आगे,नेह का सागर ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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